________________
२०
धर्मोपदेशमाला
इन्स्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित पृ. १९६) वगेरेमा एनी रचना सं. ११९० मा सूचवेली छ । वास्तविक रीते आ ग्रन्थकारे शान्तिनाथचरित सं. १३२२ मां रच्यु हतुं, जेनो उल्लेख अम्हे जेसलमेर-भाण्डागारीय ग्रन्थसूची( गा. ओ. सिरीझ नं. २१)मां, अप्रसिद्धग्रन्थ-ग्रन्थकृत्परिचय(पृ. ५२)मां दर्शाव्यो छे. ए शान्तिनाथ-चरितर्नु स्मरण आ वृत्तिना प्रारम्भमां होवाथी अने तेना संशोधक समकालीन प्रसिद्ध प्रद्युम्नसूरिनु पण स्मरण होवाथी आ वृत्तिनी रचना सं. १३२२ पछी, सं. १३२४ लगभगमां थई होवी जोइए। उपर्युक्त उल्लेख आ प्रमाणे छे
"श्रीशान्तिवृत्त-चैत्य-स्थपतिधर्मोपदेशमालायाः । एतां रचयति वृत्तिं श्रीमान् मुनिदेवमुनिदेवः ॥ १० ॥ श्रीदेवानन्द शिष्यश्रीकनकप्रभ-शिष्यराट ।
श्रीप्रद्युम्नश्चिरं जीयात् प्रत्यग्रग्रन्थशुद्धिकृत् ॥ ११ ॥" आ मुनिदेवसूरिना नाममा रहेल ‘मुनि' पदने भ्रान्तिथी विशेषण समजी, देवसूरि नाम होवानुं सूचन पीटर्सनना रिपोर्ट १, पृ. ४ मां भूलथी कयुं हतुं, तेनी नकल पाछळना अनेक लेखकोए करी जणाय छे । वास्तविक रीते मुनिदेवसूरि एवं नाम समजवू जोइए । विशेष माटे जुओ जे. भां. ग्रन्थसूची( अप्रसिद्ध० पृ. ५२-५३), तथा पाटणजैनमां. ग्रन्थसूची (पृ. १०९-११०), अने 'कण्हें ( कृष्ण ) मुनि' नामनो अम्हारो पूर्वोक्त लेख ।
___ आधारभूत उपयुक्त पुस्तिकाओनो परिचय । धर्मोपदेशमालानी जयसिंहसूरिना विवरण साथेनी नीचे जणावेली ४ प्राचीन पोथीओनो उपयोग अम्हे आ ग्रन्यना संशोधन-सम्पादनमां को छे, पाठान्तरो दर्शावता त्यां त्यां ह., क., ज., प. एवी संज्ञाओथी सूचवी छे, तेनो परिचय अहिं आपवामां आवे छे
[१] ह. आ संज्ञाथी सूचवेली पोथी हंस विजयजी मुनिराजना शास्त्र-संग्रहनी, वडोदराना आत्मारामजी-जैन ज्ञानमन्दिरमांनी छे, ते ताडपत्रीय पोथी १०७ पत्रनी, अंतमा थोडी अपूर्ण छे. प्रकाशित पृ. २१२ मां सूचवेला भाग सुधीनी छे; पडीमात्रामा मनोहर मध्यम अक्षरोमां लखायेली थोडी अशुद्ध छे, किनारो पर केटलेक स्थळे सुधारेल छ । १०३ पत्रनी बीजी बाजू, तथा १०४ पत्रनी पहेली बाजूना अक्षरो घसाइ झांखा पडी गएला होइ कष्टथी पंचाय तेवा छे । लंबाई एक हाथ-प्रभाण, अने पहोळाई ३ आंगळप्रमाण १६८४२४ इंच प्रमाणना प्रत्यक ताडपत्रमा बंने बाजूनी मळी प्रायः १६ सोळ पंक्तियो छे, प्रत्येक पंक्तिमा प्रायः १०८ अक्षरोनो समावेश करवामां आव्यो छे । आ पुस्तिकानो अंत भाग अपूर्ण होवाथी, प्रशस्ति वगेरे भाग न होवाथी, पोथी लखायानो निश्चित संवत् वगेरे सूचवी शकाय तेम नथी, अनुमानथी ते तेरमी अथवा चौदमी सदीमा लखाएली धारवामां आवे छे । आ पोथी, संपादनमा मुख्यतया आधारभूत थएली छे, तेना प्रथम पत्रनी प्रतिकृति( फॉटो) करावी अहिं प्रारम्भमां दर्शाववामां आवेल छे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org