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धर्मोपदेशमाला सज्जनोना कण्ठने सुशोभित करशे । धर्मोपदेश माटे आवा श्रेष्ठ साधननो सदुपयोग करवा तेओ प्रेराशे, पर्षदाओमां आना व्याख्यान आदिथी तेओ धर्म-प्रचार करी सुयश मेळवी शकशे, धर्मोपदेशना कार्यमां आथी सफलता मेळवशे, एवो अम्हने विश्वास छ ।
धर्मोपदेश श्रवण करनाराओने आथी धर्मनुं ज्ञान थशे, धर्म-प्रेम वधशे, धर्म अने अधर्मनां फळो समजाशे, धर्म-मार्गथी च्युत थता लोको धर्म-मार्गमा स्थिर थशे, तेमने कर्तव्योनुं अने अकर्तव्योनुं विवेक-ज्ञान थशे, उन्मार्गमांथी तेओ सन्मार्ग तरफ वळशे । श्रोताओ आ ग्रन्थना व्याख्यान-श्रवणथी परम आह्लाद साथे पुरुषार्थोनुं परम ज्ञान मेळवशे । धार्मिक तत्त्व-ज्ञान साथे अनेक प्रकारचें सामाजिक, व्यावहारिक आवश्यक उपयोगी ज्ञान पण मेळवी शकशे, एवी आ प्रन्थनी सङ्कलना छे । भाषान्तर-प्रेमीओ आ ग्रन्थना भाषान्तरो माटे प्रेराशे, एम धार अयोग्य नथी ।
अलंकार-शास्त्रना निष्णातोने, अने विचक्षण अभ्यासीओने आमांनां शब्दालंकारोथी अने अर्थालंकारोथी अलंकृत प्रसङ्गोचित विविध वर्णनो असाधारण विनोद साथे विविध चातुर्य आपशे । प्रेम-पत्रिकाओ, अन्तरालाप-मध्योत्तरवाळा, बहिरालापवाळा, प्रश्नोत्तरो, संस्कृत, प्राकृत प्रश्नोना समसंस्कृतथी प्रत्युत्तर, पाद-पूर्ति, वक्रोक्ति, व्याजोक्ति, श्लेषोक्ति, गूढोक्ति, अन्योक्ति, छेकोक्ति आदिनुं चातुर्य पण आ ग्रन्थमांथी मळी रहेशे। - आ प्रन्थमा प्रसङ्गे प्रसने जूदी जूदी शैलीथी करेलां भिन्न भिन्न देशोनां, अने नगरनगरीओनां, भिन्न भिन्न स्वभावनां नायक-नायिकाओनां, तीर्थ-स्थलो देव-मन्दिरोनां, पर्वतो, गुफाओ अने अटवीओनां, उद्यानोना अने विविध ऋतुओनां, पुष्करिणीओ ( वावडीओ), सरिताओ, सागरो, सरोवरो आदि जलाशयोनां, जलक्रीडा, जल-विहार आदिनां, जल-चर, स्थलचर, खेचर आदि सचराचर सृष्टिनां, देशाटननां, समुद्र-यात्रानां अने आकाश-गमननां, यत्रमय कपोत, गरुडनां, सूर्योदय, सूर्यास्त आदिनां, देव-लोकनां, देवोनां अने विद्याधरोनां, नरकलोक अने श्मशान आदिनां, राज-प्रासादो, राजसभाओ अने राज-वैभवोना, गुणवती गणिकाओनां, राधा-वेधनां, विवाह-प्रसङ्गनां, वधू-वरन, प्रसाधननां, संयोग-वियोगमय, सुख-दुःखमय संसारना विचित्र रङ्गोना, मल्लविद्यानों चतुरंगी सेनानां अने युद्धोना, शृङ्गार, वीर, करुण आदि रसोनां - इत्यादि नाना प्रकारनां वर्णनो अत्यन्त आकर्षक, विविध ज्ञान आपनारां अने महाकविनी असाधारण शक्तिने प्रकाशित करनारा छे ।
प्राचीन समयमा संगीत-कला, नृत्य-कला, चित्र-कला, शिल्प-कला, प्रसाधन-कला, रंजनकला, नाटक-प्रेक्षणक-कला उच्च प्रकारनी हती; प्राचीन समयमां चित्र-सभा, लेखशाला, दानशालाओ हती-तेना सूचक प्रसङ्गो आमां जोवा-जाणवा मळे छे। तथा वैद्यक, ज्योतिष, सामुद्रिक, निमित्तज्ञान, शकुनशास्त्र, स्वमशास्त्र वगेरे संबंधना प्रासंगिक उल्लेखो पण आमां छे । तांत्रिको, मांत्रिको, कापालिको तथा मायावी धूर्तो केवी जातना प्रपञ्चो करता हता, ते पण आमांथी समजवा मळे छे । विविध कला-कौशल्य दर्शावती, अनेक प्रकारचं बुद्धि-चातुर्य अने व्यवहार-चातुर्य वधारती, विविध विषयोनुं ज्ञान आपती
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