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________________ प्रास्ताविक वक्तव्य उवएसमालमेयं जो पढाइ सुणइ कुणइ वा हियए । सो जाणइ अप्पहियं, नाऊण सुहं समायरइ॥ ५३६ ॥ तेम ज ए ग्रन्थना महत्त्व, वर्णन करतां ग्रंथकार पोते ज कहे छे के- आ उपदेशमाला रूप ग्रन्थकृति, एना वक्ता अने श्रोतावर्गने शान्ति करनारी, वृद्धि करनारी, कल्याण करनारी, सुमंगल करनारी, तेम ज निर्वाण फल आपनारी छे. संतिकरी बुड्डिकरी कल्लाणकरी सुमंगलकरी य। ___ होइ कहगस्स परिसाए तह य निव्याणफलदाई ॥ ५४१॥ आ रीते ग्रन्थकारे पोते ज ए प्रकरण ग्रन्थना पठन तेम ज श्रवणर्नु विशिष्ट माहात्म्य बतावेलुं होवाथी, तेम ज एमां निबद्ध करेला विविध प्रकारना प्रकीर्ण उपदेशात्मक वचनोनी हृदयंगमताथी, श्रद्धाशील मुमुक्षु जनने ए ग्रन्थ बहु ज हितोपदेशक अने सुमार्गप्रेरक लागतो रह्यो छे अने तेथी ज एना पठन-पाठननो सतत प्रचार चाल्यो आव्यो छे. ए ग्रन्थनी आवी सुप्रसिद्धि अने समादरता जोई, एना अनुकरणरूपे ए पछीना अन्यान्य आचार्योए पण, ए शैलीना अने ए ज प्रकारना, केटलाय नवा नवा उपदेशात्मक प्रकरण ग्रन्थोनी रचना करी छे, जेमा हरिभद्रसूरिनुं 'उपदेशपद प्रकरण', जयसिंहसूरिनी प्रस्तुत 'धर्मोपदेशमाला', तेम ज मलधारी हेमचन्द्रसूरिकृत पुष्पमाला' आदि अनेक कृतिओ गणावी शकाय तेम छे. ___ जयसिंहसूरिए आ कृति मुख्यपणे धर्मदास गणीनी उक्त 'उपदेशमालाना' अनुकरणरूपे ज बनावी छे ए एनी रचना जोतां स्पष्ट जणाय छे. कारण के एमां सूचवेला उपदेशो अने तेमनी पुष्टिमाटे उल्लखेलां कथानकोनो मोटो भाग, ए उपदेशमाळाना ज आधारे प्रथित करवामां आव्यो छे. उपदेशमाळानी उपदेशात्मक उक्तिओ वधारे विस्तृत अने वधारे वैविध्य भरेली छे त्यारे प्रस्तुत धर्मोपदेशमाळानी रचना संक्षिप्त अने सूचनात्मक रूप छे. ग्रन्थकारनो उदेश उपदेशात्मक कथननी उक्तिओ करतां तदुपदेशसूचक कथानकोनी नामावलि सूचववानो विशेष देखाय छे, अने तेथी तेमणे ९८ गाथाना आ लघु प्रकरणमां, भिन्न भिन्न उपदेशोनी सूचक १५८ जेटली कथाओनी नामावलि प्रथित करी दीघेली छे. त्यारे धर्मदास गणीनी उपदेशमाला जे ५४१ गाथा जेटली बृहत् कृति छे, तेमां लगभग ७० जेटली ज कथाओनो उल्लेख करवामां आव्यो छे. ___ ग्रन्थकारे पोतानी प्रस्तुत नूतन कृतिनी रचना करवा पूर्व, धर्मदास गणीनी उक्त 'उपदेशमाळा' उपर विस्तृत विवरण कयुं हतुं जेनो उल्लेख अनेक ठेकाणे आमां करवामां आव्यो छे अने जे जे कथाओ उक्त विवरणमा तेमणे विस्तृत रूपे ग्रथित करी छे तेनी पुनरुक्ति आ विवरणमा न करता ते विवरणमाथी ज ते ते कथाओ जाणी लेवानी भळामण करी छे. पन्दरमा सैकामां पाटण, खंभात, भरूच, देवपत्तन विगेरे स्थानोनां प्रसिद्ध ज्ञानभण्डारोनुं अवलोकन करी, कोई संशोधक विद्वाने 'वृहटिप्पनिका' नामनी जे एक बहु ज उपयोगी अने प्रमाणभूत प्राचीन जैन ग्रन्थोनी 'सूचि' बनावी छे, तेमां पण ए विवरणनी एटले के एमनी 'उपदेशमाळावृत्ति'नी नोंध लेवामां आवी छे, अने तेनी रच्यासाल पण तेमां नोंधी छे. ते अनुसारे सं. ९१३ मां एटले के प्रस्तुत धर्मोपदेशमालाविवरणनी समाप्ति १ जुओ, पृष्ठ ८१, ८९, १००, १०९ १२६, १२८, १३० आदि उपर करेला उल्लेखो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002785
Book TitleDharmopadeshmala Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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