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कहं पुण जुज्झं पसरियं ? - कत्थड कराल- करवाल छणछण संबद्ध -फित-सिहि-सिहावरिय - गणंगणं' | कत्थइ रण-रुहिर-मंस - गंधायड्डिय-निवडंत-खग-सहस्स- पक्खुक्खेवपवण- समासासिय- समुट्ठित - निवडिय - भडयणं । कत्थइ धणु-गुण- विमुक्क-बाण- सेणि-संछाइयासेस - नहि (ह) यलं । कत्थर गुलगुलेंत दंति-दंतग्ग-भिजंत-महासुहड-वच्छत्थलाभोयसंकुलं । कहिं पि पसरंत धणु - जीहा-रव-गिरि - विवर- पडिसद - भरिय महियलं । कहिं पि धणुबाण-सत्ति - सवल - कुंता सि-मसुंठि -झस-तिसूल- मुग्गर- चक्कासि घेणु-दारुणं । कहिं पि नररुहिर - पाण-परितुट्ठ- किलकिलेंत - वेयाल -सय-भीसणं । कहिं पि मुहल बंदियणुग्घुट्ट-जय१. टाई । २ क. सिरि । ३ क. "यं ।
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धर्मापदेशमालायाम्
उघाडिऊण सो चिय मणि-रयणं करेड़ कुंडाई' | आयाम - पुहतेहिं पंचैव धणूसथाई तु ॥ एगूणवण्ण-संखाणि दोसु पासेसु तीए सो लिहइ । जो मग्गेणं बल-सहिओ पविसए ताहे ॥ उम्मग्गणिमग्गाओ नईओ सो संक्रमेण वोलेइ । आवाय - चिलाएहि य जुज्झइ रण-जाय-हरिसेहिं || जुज्झम्मि उ ते विजिया कुलदेवे संभरितु मेहमुहे । ते वरिसिउं पयत्ता निरंतरं ताण वयणेहिं ॥ पाणिय- भयाउ लोगो विओ सो वि चम्मरयणम्मि | छत्तरयणेण ताहे चम्मं संछाइयं सर्व्वं ॥
जो हे साली विओ चरमम्मि पच्छिमहमि । तं चिय भुंजंति नरा दिणाणि जा सत्त वर्चति ॥ नरवइ - किंकर - परिनिजिएहिं वणवण देव-निवहेहिं । उवसामिया चिलाया नरवई - आणं पडिच्छंति ॥ पुणरवि हिमर्वतोवर बावचरि-जोयण-डिओ तियसो । सिद्धो सरेण लिहियं निय-नागं समकूडे य ।। सिंधू उत्तरिलं खुणिक्खुडं उह सेणाणी । गंगं च महापउमो तदुत्तरं पुण वि सेणाणी ॥ अह वे पत्तो रण-रहसुन्भिन्न- बहल - पुल एहिं । खयर - नरिंदेहिं समं जुज्झइ सुर-खयर-नय- चलणो ॥ पुणरुत्त-मत्त मायंग - मेह-गर्जत-मुहलिय- दियंतो । निवडत - वाण - वरिसो अंकूरिय- नहयला भोगो || विलसिय-कराल-करवाल- विजुली भड-मयूर रख - मुहलो । तियसिंद-गहिय- चावो जाओ रण- पाउसो ताण ॥ फुङ्कंति सुहड - सिरे-दलाई रुहिरारुणाई सयराहं । घण-मंडलग्ग - धारा-हयाई रण- पाउसे पत्ते ॥ करिनाहाणं करिणो तुरयाण तुरंगमा रहाण रहा । समयं चिय संलग्गा सुहडा दप्पुद्धर भडाण ॥
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