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धर्मोपदेशमालायाम्
[ ९३. सङ्घ गुरुकार्ये शक्तिप्रकटने विष्णुकुमार- कथा ]
तत्थ य विणिजियासेस - विसयं महामुणि- माणसं पिव हत्थणाउरं नयरं । जं च, सुर-देहं पिव वित्थारिय-नित्त - निरंतरं, विबुहाहिट्टियं च चंदबिंबं पिव मणहरं, , कलाहिरामं च | कुलवहू-जोवणं पिव सुरक्खियं, पत्थणिजं च । अवि य - लडह-विलासिणि-सालत-चलण-निहित- जाय-वर सोहा ।
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अस्थि निरंतर बहुविह-गाणा विह-नयर-गाम-सोहिलो । सोहा-निजिय-पंकय-मयलंडण - जुबइ-वय पिल्लो || वय - निवह निरंतर संचरंत ढेकंत-दरिय-वरवसभो । वर-सह-ट्ठिय- पामर - लीला-परितुलिय-हर-गमणो ॥ गमणायास - वियंभिय-दीहर-मुह सास- सुटिय-गोवि- यणो । गोवियण - गीय-मणहर-संदाणिय- दिट्ठ- हरिण - उलो ॥ हरि-नउल- परिक्कम लडह- सुहड - पायडिय-पयड- माहप्पो । माहप्प - निसण्ण - महानरिंद-रेहंत-पय-कमलो || कमलायर - कमल - विसिड (सट्ट) - माग- पडिलग्ग भमिर- भमर-उलो | भमर - उल - पक्ख-मणहर - शंकारु पिच्छ- कीर-उलो ॥ कीर-उल- निरंतर संचरंत दुष्यंत-सालि-कण सोहो । सालि - कण-सोह - निवडिय - रेहंत-सेस महिवेढो || महिवेद - वियड- पायड-सहंत-धवलहर-संकुल-ससोहो । सोहा-निजिय-भवणो रेहइ कुरु-जणवओ दूरं ॥
सहस्स पावणो सुयस्स नामेण कुरुनरिंदस्स । लोम्मि सुपसिद्धो कुरुत्ति जय-पायडो देसो ||
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केल्लिपल्लवा इव रायपहा जम्मि रेहति ॥ णाणाविह रयण-समुच्छलंत - किरणोह-रंजियावयवा । दीसंति जत्थ रविणो किरणा तियसिंदु ( द )धणु-सरिसा || सो इंदनील - सामल-पासाए पेच्छिऊण साणंद । नच्च मयूर - विंदं वेलवियं जलय - संकाए ||
अंकुर वेलविया रवि-रह-तुरया खणं निसीयंति । मरगय-पासाय- समुच्छलंत - उद्धाट्ठिय करेसु ॥ निम्महिय - सुरहि- परिमल - सुहफंसासाय- गरुय - माहप्पो । कामि व जत्थ सणियं पवियंभइ मारओ दूरं ॥ अह नवर तत्थ दोसो निवट्टियांसेस -दोस - निवहम्मि | अवहत्थिय-मज्जाया रिउणो विलसंति सम-कालं ॥ तत्थ वियंभिय-पडिवक्ख-मत्त मायंग-कुंभ- णिद्दलणो । पणइयण- पूरियासो राया पउम (मुत्तरो नाम ॥
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