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दाने शालिभद्र - कथा ।
[ ३२. दाने शालिभद्र - कथा ] उच्छन्न-कुला' धन्ना पुत्तो से संगमो त्ति चारेइ | गाणं तन्नयाई सुपसिद्धे' सालिगामंमि ॥ गेहे गेहे खीरं दणं ऊसवंमि निय-जणणिं । पायस - करण चड्डइ अमुणेंतो रोइरो तणओ ॥ खीरा ईणमभावा पुणरुत्तं पुत्त - जायणा हों (हिं) तो । तं रूयमाणी (णि) दट्ठूण देइ जणो तीए खीराई ॥ तीए वि रंधेऊणं दिनो तणयस्स पायसो भाणे । इत्थंतरम्मि पत्तो महामुणी मास-खमणम्मि || हरिस-वस- पुलइ-अंगो तं दहुं संगमो वि चिंते । धन्नो हं जस्सेसो भोयण - वेलाए संपत्तो ॥ "देसे कालेऽवसरे पत्ते पत्तंमि मोक्ख-तण्हाए । सोवाहि-विसुद्धं दाणं पुन्नेहिं निवडे || " ता को वि अणन - समो लाभो दाणाउ होहि निरुत्तं । इय चिंतितेण इमं दिनो से पायसो तेण ॥
सुणिणा विय से भावं नाउं तयणुग्गहाओ' सो गहिओ' । थालीए जो सेसो भुत्तो सो पायसो तेण ॥
१ क. कला । २ क. सवसि । ३ ज. उ । ४ ज. सो 1 ५ ज. मह° । भ० १३
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अणुइय - बहुभोयण - तह व ( द ) रिसमणाओ' सो चेव तीए इ । रयणीए मरिऊणं रायगिहे गोभद्द-वहूइ भद्दाए ॥ उववन्नो सो गब्भे कमेण जायंमि हरिस- पडिहत्थं । जायं स पि पुरं कयं च वद्भावणं पिउणा ॥ सुमिणंमि फलिय - साली दिट्ठो जणणीए तेण से णामं । मामि गुरूहिं कयं सुयस्स अह सालिभहो ति ॥
वडिओ अणन - सरिसेहिं रूवाइ-गुणेहिं, कला - कलावे (वा) इहि य । संपत्तो तिहुयणसलाइणिजं जोधणं । गेहि च्चिय सरिस वयो-वेसेहिं वयंसएहिं सह अभिरमंतस्स संपत्तो सरओ । जम्मिय, रेहंति कमलायरा, सह रायहंसेहिं । हरिसेअंति कासया, सह नडनङ्क-छत्तेहिं । वियरंति दरिय-वसभा, सह मत्त महागएहिं । पसरंति सत्तच्छय-पवणा, सह भसलावलीहिं । रेहंति काणणाई, सह सर- तडागाइएहिं ति । अवि यजल - पक्खालिय- विमले रेहइ नह-मंदिरंमि ससि - दीवो । भद्दिय-विबोहकाले सारय- लच्छीए दिनो व ॥
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तओ सालिभद्द-गुणावजिएहिं तन्नयर - वासीहिं इब्भ-सेट्ठि-सत्थवाहाइएहिं उवणीयाओ' सवालंकार- विभूसियाओ से गेहे निरुवम- [ रूव ] - लायन्न - जोवण-सिंगार-हाव-भावकला-कोसल्लाइ -सणाहाओ' सवालंकार - विभूसियाओ' बत्तीसं कन्नगाओ' । सबहुमाण
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