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________________ स्व० बाबू श्री बहादूर सिंहजी सिंघी ६५ भूगोल के भूगर्भविधाने लगतां सामयिको के पुस्तको वांचता ज सदा देखाता हता. पोताना एवा विशिष्ट वाचनना शोखने ली तेओ इंग्रेजी, बंगाली, हिंदी, गुजराती आदिमां प्रकट थता उच्च कोटिना, उक्त विषयोने लगता विविध प्रकारनां सामयिक पत्रो अने जर्नलस् आदि नियमित मंगावता रहेता हता. आर्ट, आर्किऑलॉजी, एपीग्राफी, न्युमेस्मॅटिक, ज्योग्रॉफी, आइकोनोग्रॉफी, हिस्टरी अने माइनींग आदि विषयोनां पुस्तकोनी तेमणे पोतानी पासे एक सारी सरखी लाइब्रेरीज बनावी लोधी हती. ओ स्वभावे एकान्तप्रिय अने अल्पभाषी हता. नकामी वातो करवा तरफ के गप्पांसप्पां मारवा तरफ तेमने बहु ज अभाव हतो. पोताना व्यावसायिक व्यवहारनी के विशाळ कारभारनी बाबतोमां पण तेओ बहु ज मितभाषी हता. परंतु ज्यारे तेमना प्रिय विषयोनी - जेवा के स्थापत्य, इतिहास, चित्र, शिल्प आदिनी - चर्चा जो नीकळी होय तो तेमां तेओ एटला निमग्न थई जता के कलाकोना कलाको वही जता तो पण तेओ तेथी थाकता नहीं के कंटाळता नहीं. तेमनी बुद्धि अत्यंत तीक्ष्ण हती. कोई पण वस्तुने समजवामां के तेनो मर्म पकडवामां तेमने कशी वार न लागती. विज्ञान अने तत्त्वज्ञाननी गंभीर बाबतो पण तेओ सारी पेठे समजी शकता हता अने तेमनुं मनन करी तेमने पचावी शकता हता. तर्क अने दलीलमां तेओ मोटा मोटा कायदा शास्त्रीओने पण आंटी देता. तेम ज गमे तेवो चालाक माणस पण तेमने पोतानी चालाकीथी चकित के मुग्ध बनावी शके तेम न हतुं. पोताना सिद्धान्त के विचारमां तेओ खूब ज मक्कम रहेवानी प्रकृतिना हता. एक वार विचार नक्की कर्या पछी अने कार्यनो स्वीकार कर्या पछी तेमांथी चलित थवानुं तेओ बिल्कुल पसंद करता नहीं. व्यवहारमां तेओ बहु ज प्रामाणिक रहेवानी वृत्तिवाळा हता. बीजा बीजा धनवानोनी माफक व्यापारमां दगाफटका के साच-झूठ करीने धन मेळववानी तृष्णा तेमने यत्किंचित् पण थती न हती. तेमनी आवी व्यावहारिक प्रामाणिकताने लक्षीने इंग्लेंडनी मर्केंटाईल बेंकनी डॉयरेक्टरोनी बॉर्डे पोतानी कलकत्तानी शाखानी बॉर्डमां, एक डायरेक्टर थवा माटे तेमने खास विनंती करी हती के जे मान ए पहेलां कोई पण हिंदुस्थानी व्यापारीने मळ्युं न होतं. प्रतिभा अने प्रामाणिकता साथे तेमनामां योजनाशक्ति पण घणी उच्च प्रकारनी हती. तेमणे पोतानी ज स्वतंत्र बुद्धि अने कुशळता द्वारा एक तरफ पोतानी घणी मोटी जमीनदारीनी अने बीजी तरफ कोलीयारी विगेरे माइनींगना उद्योगनी जे सुव्यवस्था अने सुघटना करी इती ते जोईने ते ते विषयना ज्ञाताओ चकित थता हता. पोताना घरना नानामां नाना कामथी ते छेक कोलीयारी जेवा मोटा कारखाना सुधीमां के ज्यां हजारो माणसो काम करता होयबहु ज नियमित, व्यवस्थित अने सुयोजित रीते काम चाल्यां करे तेवी तेमनी सदा व्यवस्था रहेती हती. छेक दरवानथी लई पोताना समोवडीया जेवा समर्थ पुत्रो सुधीमां एक सरखं उच्च प्रकारनुं शिस्त- पालन अने शिष्ट- आचरण तेमने त्यां देखातुं हतुं. - सिंघीजीमा आवी समर्थ योजकशक्ति होवा छतां - अने तेमनी पासे संपूर्ण प्रकारनी साधनसंपन्नता होवा छतां, तेओ धमालवाळा जीवनथी दूर रहेता हता अने पोताना नामनी जाहेरातने माटे के लोकोमा मोटा माणस गणावानी खातर तेओ तेवी कशी प्रवृत्ति करता न हता. रावबहादुर, राजाबहादुर के सर-नाईट विगेरेना सरकारी खेताबो धारण करवानी के काउन्सीलोमा जई ऑनरेबल मेंबर बनवानी तेमने क्यारेय इच्छा थई न हती. एवी खाली आडम्बरवाळी प्रवृत्तिमां पैसानो दुर्व्यय करवा करतां तेओ सदा साहित्योपयोगी अने शिक्षणोपयोगी कार्योंमां पोताना धननो सदूव्यय करता हता. भारतवर्षनी प्राचीन कळा अने तेने लगती प्राचीन वस्तुओ तरफ तेमनो उत्कट अनुराग हतो अने तेथी ते माटे तेणे लाखो रुपया खर्च्या हता. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002784
Book TitleDigvijaya Mahakavya
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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