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________________ पं० ५२-७३] विईय संधि अवलोयहि चंपय तिलय चूय तिन्निवि रइनाहहे वाण-रूय ॥ ५२ भमरउल-मुहल फुल्लिय असोय विरहिणि-जण-जणिय-महंत-सोय ॥५३ पवणाहय तुंग तमाल ताल नच्चंति नाइ वेयाल काल ॥ ५४ धव-लउय-जूहि[-नव-कुंपलाइँ(?) छम्मासइँ नइँ मोत्ताहलाई ॥ ५५ उम्मिल्ल-दलावलि किंकराराइं(?) उववहहिँ अणोवम कणय-छाय॥ ५६ । अलि पंचेंवि केयइ वउले' लग्गु(?) जं जसु मणिट्ठ तं तासु लग्गु ॥ ५७ उब्भिय-करअंगुलि एह जाई हक्कारइ भमर-जुयाणु नाइ ॥ ५८ पाडल-तरु मउरियउ ऍह पेक्खु माणिणिजेण-माण-निमूल-दक्खु ॥ ५९ सहयारु महादुमु एत्थु लोइ हिंडोलइ सहुँ पिययमइ कोइ ॥ ६० नाणाविह-कीलइ जाहि" रमेवि पउमसि[रि भमइ वणि नाइ देवि ॥६१ ॥ धत्ता ॥ सही" का वि जंपइ "रवि वट्टइ निडर-किरणु । इह माहवि'"-मंडवि पिय-सहि वइसहुँ एक्कु खणु" ॥६२ । [६] एत्थंतरि" पत्तुं समुद्ददत्तु मंथर-गई कुंजरु नाइ मत्तु ॥ ६३ ॥ माहवि-लय-मंडवि सुह-निविट्ठ पउमसिरि तेण सहुँ सहिहि दिट्ठ॥ ६४ "कंदप्प-नराहिव-रायहाणि का एह किसोयरि नवजुयाणि ॥ ६५ मुह-कमल-सुरहि-नीसास-लुद्ध लीलारविंद-हय-भमर-मुद्ध ॥ ६६ किं वण-सिरि पयडिय-पाडलच्छि(१) [19B]सुर-सुंदरि किंव वसंत-लच्छि॥६७ रई मयण-रहिय किं नाग-कन्न विज्जाहरि किंव सुवन्न-वन्न ॥ ६८० विम्हिय-मणु ताहि नियंतु रूउँ तियसो इव निच्चल-नयेणु हूई ॥ ६९ मयणाउरु उवेल्लंत-अंगु ठिउमंतेंहि विसिकिाउ नं भुयंगु ॥७० सो सत्थवाह-नंदण-वरिट्ठ पउमसिरि-णय ण-गोयरि पइ8 ॥ ७१ "किं एहु फणिंदु सुरिंदु" खर्दु नारायणु सूरु कुयेरु चंदु ॥ ७२ रइ-रहिउ मयण किं नागकेउ" चिंततिएँ तहि उल्लसिउ सेउ ॥ ७३ 25 ___1 रयनाहह. 2 °सोह. 3 धइलहं छतुहियुंचलाई. 4 नइ. 5 उमेल्ल. 6 उववह हिं. 7 °ले वि. 8 लगा. 9 जाई. 10 जुपाणु. 11 माणणि. 12 सहियारु. 13 लोए Probably to be corrected to जोइ. 14 Meaning?. 15 रगेवि. 16 देवी. 17 सहि. 18 कय. 19 महाव. 20 पइसह. 21 एत्थंतरी. 22 यतु. 23 मंथरगय. 24 °लइ. 25 सहुं. 26 निविद्रु. 27 मुहु. 28 कमलु. 29 लुद्ध. 30 पाटुलच्छि. 31 केम्व. 32 रय. 33 निं. 34 नागकंत. 35 सुयन्न. 36 °मणुं. 37 रू. 38 थिउ सो. 39 निच्चलु नयण. 40 दूउ. 41 उवेन्नंतु. 42 Three moras too fev. 43 यथवाहु. 44 वरिहु. 45 नय. 46 यइहु. 47 सुणिंदु. 48 रुउ. 49 नागकेऊ. 50 चिंतंतीए. 51 उलसीउ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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