________________
10
ર
सज्झाउ करंति पढंति नाणु दस - विहुँ मुणिधम्म समायरंति भावंति दुवालर्स भावणाउ विहरवि महि-मंडल विगय-संकु ' भावेण सरीरइँ संलिहेवि
15
दंसण-गुण- सारइँ सुह-झाणुं [15B] करेविणु
सुर- सोक्खइँ भुंजेंवि पुणरवि अवइन्नइँ "
पउमसिरि चरिउ
[ पं० २२९ - २३४; १-११
शायंति' चउबिहुँ धम्म - झाणुं ॥ २२९ उवसग्गं परीसह निज्जिणंति ॥ २३० गिम्हंमि दिति जायावणाउ ॥ ३१ सम्मत्तणु पालिउ निक्कलंकु ॥ ३२ मणि दिवदिट्ठि जिणु संभरेवि ॥ ३३
॥ घत्ता ॥
[xxxxxxxx ] पालेइ पंच महबयइँ | अणसणु लेविणु देवलोइ सबइँ गयइँ ॥ २३४
भवजलहि-जाणवत्तं वोच्छामि जमिह वित्तं "
॥ प्रथमसंधिः ॥
*
Jain Education International
[ विईय संधि ]
साएय- महापुरि सत्थवाहु अवगाहिर्यं - सायरु सिद्धिवंतु तसु गेहिणि" नामिं चंदले ह 20 धणदत्त - धणावह पुत्र-वृत्तं
किडे [164] पढमहु नाउँ समुद्ददत्तु पइ दियहुँ वे वि" उवहसिय काम गंभीर - मुत्ति नं" सुर- कुमार कमल व सुनेत्त पसन्न -वेस 21 चंद- दुमो व सीयल-सहाव
25
वीर - जिणं पणमिऊण भावेणं । धणसिरि-धणदत्त नामाणं ॥ १
॥ घत्ता ॥
देवलोइ मोहिय-मणइँ । भरह- खेत्ति पंच वि जणइँ ॥ २
[१]
नव
निय - विश्व - विणिज्जियै- सग्गनाहुं ॥ ३ बहु- देसि पसिद्धुं असोगदत्तु ॥ ४ - जोवर्ण कंचण-वन्न- देह ॥ ५ सुरलोयहु तहि स्वव पुत्त ॥ ६ वीया हुँ निवेसिडें उस हदच ॥ ७ व ंति ससि व कलाहिराम ॥ ८ सुंदर पुर- कामिणि" -हियय-हार ॥ ९ सूरो व सुतेय अदि-दोस ॥ १० आरूढ - महागुण नाइ भाव ॥ ११
30
4 दसविह.
1 ज्झायंति. 2 बहुवहु . 3 ° झाणुं 7 दुवलय. 8 संहरे वि. 9 Missing. 10 °स्साणु 11 वीतं. 14 विणिजिउ 15 जग्गनाहु. 16 अवगाहिउ. 17 सिद्धउतु 20 चंदलेहिं. 21 नवजोअण. 22 °वत्त. 23 उववंत. 27 पहूदियभु. 28 येवे. 29 नं. 30 कामिणिं. 31 व 34 वु चंददुमो व
24 किय.
For Private & Personal Use Only
5 उवसहसहं. 6 परिसण. 12 अवईनई. 13 °विहवि. 18 यसिधु 19 गेहिणिं. 25 पीयादु. 26 विवेसिउ.
32 सुपसन केस 33 अदिह,
www.jainelibrary.org