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________________ तृतीय संधि ३३ मने बपोरने समये ते शंख ना विशाळ महेलमा प्रवेश्यो. तेणे, जेणे वेणी बांधी छे, जेना दातनी हार श्वेत छे, जेना हाथमांथी वलय सरी पड्यां छे, जेनी लटो लटके छे, मेलथी मलिन जेनो वेष छे, रेखा (जेटलुंज जेनुं शरीर) बाकी रह्यु छे-आवा प्रकारनां गुणवाळी पद्मश्री ने जोई. कुमारने जोईने ते बाळानो शोक अडधी क्षणमां ज नाश पाम्यो-पुण्यशाळीनुं असह्य अने लोकोने संतापतुं दारित्र्य नाश पामे तेम. कडवक ६ स्नानयोग्य, सुगंधी जळथी ते नाह्यो, जम्यो, हरिचंदननो लेप कों; तेने तांबूल दीधु; घटती आगतास्वागता करी तेना कुशळसमाचार इत्यादि पूछया. एटलामा घणा प्रताप (१. ताप, २. प्रताप) वाळो अने वारुणी(१. पश्चिम दिशा, २. दारु)ना संगथी जेनामां अनुराग (१. रताश, २. प्रेम) जन्म्यो छे तेवो (सूर्य) आथम्यो. सूर्य पण आथमी जाय छे (तो पछी आ) जगतमा (बीजा) कोनो अस्त नथी थतो? पद्मश्री ए वासगृह सज्ज कयु. पोची तलाई शयन पर बिछावी (?) अंधाराने हठावतो निर्मळ प्रदीप (मूकवामां आव्यो). त्यां शय्यामां कुमार बेठो हतो. (हवे) अन्य जन्ममां धन श्री ए अनेक दुःखना समूहरूप जे कर्म बांध्यु हतुं ते, भोगने अंतराय करनारुं उदय पाम्युं, (अने) त्यां के लि प्रिय पिशाच आव्यो. पभ श्री ने वासगृह तरफ आवती जोईने ते विचारवा लाग्यो, “हुँ बनेना स्नेहमां विक्षेप पडावू." ते बीजी भीतनी आडे रहीने पेलो कुमार सांभळे तेम मोटेथी शब्दो बोलवा लाग्यो, "सूर्य भाथमे अने गाढं अंधारुं प्रसरे त्यारे दररोज अहीं (मारे) घरे आवजे : आ प्रमाणे मने संकेत दईने, हे पद्मश्री, तें तो नहीं बीजा कोईने आण्यो छे." "ए कोण पृष्ट, अनार्य बोले छे" कही कुमार जोवा जाय छे त्यां तो ते झट दईने नासी गयो. ते दुष्ट ने मायावी पिशाचनी कुमारे सारी रीते तपास करी, पण पवनथी झपटायेला प्रदीपनी जेम एकाएक ते क्यां गयो (ए) जणायु नहीं. कडेवक ७ कुमार विचारवा लाग्यो, "आ मारी स्त्री निःस्नेह अने दुःशील थई गई छे. बहुज विस्मयनी वात छे के निर्मळ कुळमां उत्पन्न थयेली शंख नी पुत्री केम करतां चारित्र्यनी खराब बनी गई. ए दुष्ट शीलवाळी खोटे मागे चडी गई. निरंकुश कामलीलाने तेणे वधवा दीधी. स्वच्छंदी, अनार्या, अनुकंपा विनानी(?), अज्ञानी, मोहित थयेली, बीक विनानी ! कुलटा नथी गणती पोतार्नु कुळ कलंकित थाय छे ते; नथी गणती शीलरत्न भांगे छे ते नथी गणती मा, बाप के भाईने, नथी गणती सासु, ससरा के देरने; नथी गणती स्वजनवर्ग, सुहृदो के परिजनने; नथी गणती मा लोक ने परलोकना भयने; नथी गणती मरणने. लाज ने बीक तेणे मूकी दीधा होय छे. न करवाना करे छे, ने......खेले छे. कपट करी धणीने मरावे छे, ने बीजा साथे मोज करे छे, ने पछी तेय गमतो नथी. अनेक फंदवाळी (?) कुलटा स्त्रीने चंदनलतानी जेम भुजंगो (१. उपपतिओ, २. सो) भोगवे छे. आ छोकरीना नाककान कापीने ए दुःशीलाने भाजे हुं कृतांतना दर्शन करावं छं. ए दुष्टानु कमळनी जेम माथु तोडी लउं छु. पापिष्ठाने कामासक्तिर्नु फळ मळवू जोईए." कोपानिथी जळता मनवाळो कुमार आम विचार करतो हतो. (पछी) तेने डाह्या माणसोनी नीतिनुं स्मरण थयुं, "दुष्ट स्त्रीने तजी देवी ए ज (तेनो) दंड." कडवक ८ जेना मुखवासनी उस्कट सुगंध प्रसरी रही छे, जे खूब रोमांचित थई छे एवी पद्मश्री हाथमां कमळ अने प्रचुर तांबूल लईने, अने शणगार सजीने आवी. अतिशय भ्रूभंगथी जे पउम. प्र.5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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