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________________ प्रथम संधि न कर......तुं अमारी स र स्व ती, यमुना, गंगा, कुलदेवता, विज या, जयंती, दुर्गा, सावित्री गौरी, भगवती पियासा(?) (बधु) छो. अमे तारा किंकर, भृत्य, दास छीए. आ वहुरु यशोमती अने यशोदा तारी दासीओ ज छे. जे कोई तारी आज्ञानुं खंडन करे तेना बाप साथे पण (अमारे) काई लेवादेवा नहीं. तुं अमारा घरनी भाळ राखजे. परिजनोर्नु पालन करजे. गुरु अने देवोनी पूजा करजे. मुनिओने ने उत्तम ब्राह्मणोने दान आपजे. बहेन, खेद न कर, तारा शरीरने झरवा न दे". कडवक ६ घरनी संभाळ राखवामां तेनो काळ व्यतीत थतो हतो. ते नगरमा घणा गुणी एवा महामुनि धर्म घोष विहार करतां करतां आव्या. लोकोना मनने आनंदित करनार, रोषरहित, अज्ञानरूपी गाद तिमिरने हरी लेनार, निर्वाणरूपी महान नगरी (प्राप्त करवा माटे) परम शरणरूप, समग्र बारेय अंगनो जेणे अभ्यास कर्यो छे एवा, इंद्रियरूपी चंचळ तुरंगने संयममा राखनार, तृण, मणि ने कांचनने के शत्रु अने मित्रने समान गणनार, नवविध ब्रह्मचर्य अने गुप्तिना पालनने लीधे पवित्र, शीलांगना भारे बोझाने ऊंचकी शकनार, जीवादि पदार्थोना तत्वने प्रकट करनार, भतिशय दुष्कर तपथी शोषाई गयेला शरीरवाळा, दशविध मुनिधर्मना निवासरूप, धैर्यवान, व्रण शल्यने उखेडी नाखनार, सिद्धिरूपी पत्नीमा खूब अनुरागवाळा, योगेश्वर, म द नने बाळनार शंकर, लोकोना (नारायणपक्षे-अर्जुन ना) व्याधिने दूर करनार जाणे के नारायण, मंदर पर्वतनी जेम निष्कंप, कमळसरोवरनी जेम कांप वगरना, एवा ते मुनि हता. (तेमने चंद्रनुं उपमान न आपी शकाय कारण,) चंद्र दोषाकर (१. रात्री करनारो, २. दोषनी खाण), कलंकना दोष. वाळो अने वांको छे ए प्रमाणे जगतमा ते अवमानना पामे छे. (अने) सूर्यन तेज तो चंड अने तीव्र होय छे; तेने विद्वानोना तेजनी जेवू केम कहेवाय ? तपना तेजथी प्रकाशता, उपशमवाळा, सकळ जीवोना संतापने हरनारा, अने, जेर्नु उत्तम शासन कदी खंडित यतुं नथी अने जे पापनो नाश करे छे तेवो उत्तम धर्म ज जाणे साक्षात् होय (तेवा ते हता). कडवक ७ गतिमान कल्पद्रुम जेवा ते मुनि नगरना दरवाजा पासेना, प्रासादोमा श्रेष्ठ एवा लक्ष्मीगृह चैत्यमां घणा मुनिवरो वच्चे, कुलपर्वतोनी मध्यमां मेरुपर्व तनी जेम, बेठा हता. देव समान समृद्धि वाळा अने मधुरभापी श्रावको तेनी अत्यंत सेवा करता हता. कल्पद्रुम हरिचंदनथी वीटळायेलं होय तेम ते मुनि पवित्र अने सुंदर लोकोथी वीटळायेला हता. धनश्री, धन दत्त अने धना व हे तेमना सेवको साथे ते मुनींद्रना दर्शन कर्या. सूरिने प्रणाम करीने साधुओने वंदन कर्या. तेमणे 'उत्तम धर्मलाभ' एवी आशिष दीधी. पछी त्यां बेठेलाने मुनिवर धर्म घोष नवीन मेघना जेवा (गंभीर) स्वरे कहेवा लाग्या, "जेनो सामो कांठो देखातो नथी, जेमां मुख्यत्वे जरा, मरण अने व्याधिरूपी तरंगो छे, तेवा भयानक भवसागरमां नीच योनिमां भट. कता दुष्कर्मी जीवने (घणा) केशे करीने मनुष्य जन्म मळे छे. धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष नामे चार (अर्थ) पुरुषनां मुख्य (प्रवृत्तिनिमित्त) छे. तेमां धर्मने जिनवरोए श्रेष्ठ कह्यो छे, केम जे ते होय तो बाकीना बधा प्राप्त थाय. तो बुद्धिमान पुरुषे आदरसहित तेने जाणी, तेने ज आचरवो. जेम कोई विचक्षण पुरुष उत्तम लक्षण वाळा रत्नने, विचारीने आदर साथे ग्रहण करे छे, तेम भवसागरना तारक अने मोक्षसुखना कारणरूप धर्मनो पण पंडित पुरुषे (आदर करवो जोईए). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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