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________________ पउमसिरि चरित प्रस्तुत काव्यनुं संपादन पूज्य मुनिश्री जिनविजयजीनी प्रेरणा अने मार्गदर्शन अनुसार में हाथ धरेलु. मारा मित्र अध्यापक मधुसूदन ची. मोदी पण केटलाक समययी पउ म सि रिच रि उ संपादित करवा माटे सामग्री एकठी करेली होवान में मुनिजी पासेयी जाण्यु. एटले पछी एमनी ज सूचनानुसार अमे साथे मळीने ज ग्रंथपाठ तैयार कर्यो. अपभ्रंश साहित्यनी समज वधे अने लोकोने तेमां रस लेवान सुगम पडे ए आशयथी मुनिजीनी खास सूचना प्रमाणे में आ साथे गुजराती भाषांतर, शब्दकोश अने भूमिका उमेरेलां छे. भाषांतर मूळ ग्रंथ समजवामां सहायक बने ए एक ज दृष्टिए तैयार करेलुं छे. तेमां मूळनुं लालित्य प्रतिबिंबित करवानो कशोए प्रयास नयी करेलो. मध्यकालीन संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश साहित्यना मुनिजीना बहुदेशीय ज्ञाननो, तेमज अनेक कृतिओना शास्त्रीय संपादक तरीके तेमणे संचित करेला अनुभववित्तनो लाभ प्रस्तुत कृतिने ठीकठीक मळेलो छे अने एथी ग्रंथपाठना संख्याबंध कूट के अशुद्ध स्थानोमांथी केटलांक बोधगम्य थयां छे. आ माटे तेमनो ऋणखीकार करवो ए एक आनंददायक कर्तव्य छे. हरिवल्लभ भायाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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