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________________ पद्मश्रीचरित २८ मारा जे बे समानविद्या-रसिक जेवा विद्वान् मित्रो द्वारा प्रस्तुत पउम सि रिच रिउ संपादित थई प्रकाशित थाय छे ते बन्ने गुजरातना अपभ्रंशभाषाभिज्ञ विशिष्ट अभ्यासियो छे. श्रीयुत मधुसूदन मोदी तो संस्कृत, प्राकृत, प्राचीन गुजराती अने अपभ्रंश भाषाना एक मर्मज्ञ विद्वान् तरीके; तेम ज तुलना. विवेचनानी शास्त्रीय पद्धति पूर्वकनी ग्रन्थसंपादननी कळाना एक अच्छा अभ्यासी तरीके, अत्यार आगमज योग्य ख्याति पामी चुकेला छे. एमनी 'अपभ्रंश पाठावलि' अपभ्रंश भाषाना अभ्यासियो माटे एक सुन्दर पाठ्य पुस्तक तरीके प्रसिद्धि पामी चुकी छे. गा० ओ० सी० माटे 'प्राचीन गूर्जर काव्यसंग्रह- एक पुस्तक ए अत्यारे तैयार करी रह्या छ जेना प्रकाशनथी प्राचीन गुजरातीना अध्ययन-परिशीलनमा उपयोगी थाय तेवी घणी नवी सामग्री प्राप्त थशे. श्रीयुत भायाणीये, पोताना भाषाशास्त्र विषयक मर्मस्पर्शी परिशीलननी गंभीर 'शैलीनो सुन्दर परिचय, मारी द्वारा संपादित 'सन्देशरासक' ना व्याकरण, छन्द अने ग्रन्थसार रूपे एमणे लखेला विस्तृत निबन्ध द्वारा, विद्वद्धर्गने सारी पेठे आप्यो छे. हवे ए महाकवि स्वयंभूना अपभ्रंश महाकाव्य ‘प उम च रिउ विशिष्ट संपादन करी रझा छे, जेनो प्रथम भाग थोडा ज समयमां, आ ग्रन्थमाळाना एक सुन्दर मणि तरीके विद्वानोना करकमळमां उपस्थित थशे. ए उपरान्त धीजी पण केटली क अपभ्रंश अने प्राचीन गुजराती कृतियोना संशोधन-संपादननुं एमर्नु काम चालू छे. २९ प्रस्तुत 'पउमसिरिचरिउ' ना विषयमां श्रीयुत मोदीये पोताना 'प्रास्ताविक वक्तव्य' मां, तेम ज श्री भायाणीए पोतानी 'प्रासंगिक भूमिका' मां यथायोग्य परिचय आपवानो प्रयत्न कर्यो छे. पाटणना संघवीना पाडामां आवेला भंडारमाथी ए कृतिनी एकमात्र ताडपत्रीय प्रति मळी छे अने तेना ज ऊपरथी आनी नकल करी अत्र प्रकट करवामां आवी छे. प्रति सिद्धराज जयसिंहना समयमां लखाएली छे- एटले विक्रमना १२ मा सैकाना अन्त जेटली जूनी छे; परंतु प्रतिमां उपलब्ध लखाणनी वर्णसंयोजना (जोडणी) जोता जणाय छे के जे लहियाए ए नकल करी छे, ते सुपठित के लिपिविज्ञ न हतो. ते पोताना लखाणनी भाषा तो समजे छे, परंतु व्याकरण नथी जाणतो. एटले द्वस्व दीर्घ के संयुक्त द्वित्व आदि अक्षरोनो उपयोग करवामां ते बहु ज बेदरकार जणाय छे. एटलुं ज नहि पण घणीक वार वर्णव्यत्यय एटले के अक्षरो आगळ-पाछळ लखी देवानी पण तेनी खोटी टेव छे. एटले तेनी उतारेली ए नकल भाषानी दृष्टिये घणीक जग्याए भ्रष्ट भएली छे. लहियानी आवी खासियतनो अभ्यास करी, प्रस्तुत कृतिना संपादकोए बनतां सुधी एने शुद्ध करवानो प्रयत्न कर्यो छे; अने में पण एमां केटलोक सहयोग आप्यो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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