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________________ पद्मश्रीचरित पति, सिंहासनद्वात्रिंशिका' अने 'प्रबन्धचिन्तामणि' मां मळी आवता थोडाक दोधको विगेरेनुं प्रकीर्ण भंडोळ हतुं. ए सिवाय तेमने कोई स्वतंत्र अने सलंग अपभ्रंश साहित्यिक कृति ज्ञात थई न हती. ए प्राकृत व्याकरण लखती वखते ज प्रो. पिशलने लाग्युं हतुं के अपभ्रंश भाषाना ज्ञानना अनन्य साधन तरीके उपयुक्त जणाती ए बधी सामग्री, एकत्र रूपे, एक पुस्तकमां आलोचनात्मक टिप्पणो साथे छपाचवामां आवे तो अभ्यासियोने ते बहु उपयोगी थशे. तेथी तेमणे ज, ए पछी, ते बधां अवतरणोने एकत्र करी, ते साथे पाठभेद आदि सूचवता टिप्पणो जोडी, 'माटेरिआलिएन सुर् केन्टनिस् डेसू अपभ्रंश '( Materialien zur Kenntnis des Apabhramsa) 1719 ft tarat (9197 भाषाना व्याकरणनी एक पूर्ति'ना ( Ein Nachtrag zur Grammatik der Pra. krit Sprachen) रूपमां, सन् १९०२ मां बर्लिनमाथी प्रकट कयु. दुर्भाग्ये ए पछी तरत ज अ० पिशलनो, प्राकृत भाषानी भूमि-भारत वर्षमा (मद्रासमां) स्वर्गवास थयो ! १३ प्राकृत भाषाओना महान् अभ्यासी अने आजीवन प्राकृत शब्दशास्त्रनी चर्चामां निमग्न रहेनार, ए अंसाधारण प्राकृत वैयाकरणने, एनी कशी खबर न्होती पडी के जे अपभ्रंश भाषानी साहित्यिक सामग्रीना अभावनी कल्पना, एमने खटकी रही छे तेनी विपुल ग्रन्थसमृद्धि जैन भंडारोमा हुजी य भरी पडी छे ! गुजरात, राजपूताना, दिल्ली, मध्यभारत, विरार आदि प्रदेशोमां आवेला अन्धकारग्रस्त जैन ग्रन्थभंडारोमां, बे चार के पांच दस ज नहिं, परंतु नानी-मोटी सेंकडो अपभ्रंश ग्रन्थकृतियो छुपाएली पडी हती. पिशलनी जाणमां तो अपभ्रंशमां रचाएला एक 'अब्धिमन्थन' नामना ग्रन्थ- केवळ नाम ज आव्युं हतुं, के जेनो उल्लेख वाग्भटना 'अलंकारतिलकमां थी एमने मळी आव्यो हतो. परंतु आजे आपणी सामे अपभ्रंशनी नानी म्होटी एवी कोडी (२०) करता य बधारे संख्यामां कृतियो प्रकट थएली दृष्टिगोचर थई रही छे, अने एवी वीजी अनेकानेक कृतियोना प्रकाशमां आववानी अपेक्षा रखाई रही छे. [अपभ्रंश साहित्यनी उपलब्धि अने प्रसिद्धि ] १४ परंतु खरी रीते, कृतज्ञताज्ञापन खातर आपणे ए सत्य जाणवू-जणाव, जोइये, के अपभ्रंश साहित्यने आ रीते प्रकाशमां लाववानुं मुख्य मार्गदर्शन पण, अन्य एक समर्थ जर्मन विद्वाने ज, आपणने कराव्युं छे. अने ते हता जर्मनीना बॉन युनिवर्सिटीना भारतीय विद्या ( Indology ) ना महान् अभ्यासक अने अध्यापक स्वर्गवासी डॉ० हेर्मान याकोबी. डॉ० याकोबी पण पिशलनी जेम प्राकृत भाषाना एक प्रौढ पण्डित हता, अने ते साथे तेओ जैन आगमोना गंभीर अभ्यासी पण हता. जर्मनीमा जैन साहित्यना अध्ययन-संशोधनन। सौथी प्रमुख पुरस्कर्ता तेओ ज हता. जैन प्राकृतनो पद्धतिपूर्वक अध्ययन करनाराओ माटे, तेमणे 'उत्तराध्ययनसूत्र'नी टीकामांथी केटलीक प्राकृत कथाओ तारवी, तेना संग्रहरूप एक प्राकृतभाषापाठ्यपुस्तक तैयार कयु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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