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पउमसिरि चरित १९. उदलिय ए मूळनो ज पाठ छे, अने छंद पण ए ज रूपनी अपेक्षा राखे छे. उद्दलियमाथी,
संयुक्त व्यंजनने एकवडो करवानी प्रक्रिया द्वारा उदलिय सिद्ध थयुं छे. शब्द कोषमा उहलियने स्थाने उदलिय वांचQ. पूर्वांश उपसर्ग के निपात होय तेवा शब्दोमां पूर्वांश अने उत्तरांशनी संधिमां आ ध्वनिव्यापार प्रवयों होवानां बीजां केटलांक उदाहरणो : अखलिय (अस्खलित) १. ८१, निघोस (निर्घोष) १.८८, दुकय (दुष्कृत) १. ९०, निगुण (निर्गुण) १. १३४, निमूल (निर्मूल?) २. ५९, दुवाय (दुर्वात) ३.
१०३. २०. रवाउल. अपभ्रंशमां तेम ज प्राचीन गुजरातीमां आ शब्द प्रचलित हतो. सरखावो
मणिशंभ-रमाउलि (गुणेसंपादित भ वि स यत्त क हा ५-९-२२); दी रम्माउलं ए
(रेवंत गिरि रासु ४-१-२) वगेरे. २१. उच्छरण. मूळ उच्छुरण होवा संभव. सरखावो-देशी नाम माला १, ११७ :
उच्छुअरण (इक्षु+अरण्य)-इक्षुवन. २४. दूराउल (दु राजकुल) एटले 'दुष्ट राजवी'. राउलमाथी ज गुज. 'रावळ' निष्पन्न
थयो छे. ३४-३८. राजप्रासाद-राजमहेलने प्रावृष्-वर्षाऋतुनुं रूपक आप्युं छे. ४५. वालनी साधे निडाल शब्दनो प्रास ज बेसे. पण मूळमां निलाड छे, एटले ते एमने
एम राख्यो छे. सरखावो आगळ उपर १. १५०नो प्रास निडालु-जालु. ६५. पियास शब्द अजाण्यो छे. पिशाची-*पिशाचा (एक योगिनी)-पिसाया-पिसाय,
पछी व्यत्ययथी पियास एम कामचलाउ उपपत्ति आपी शकाय. ७७-८० दड्डमयणु वगेरे विशेषणो श्लिष्ट छे अने जुदा जुदा अर्थमां उपमान तेम ज उपमेय साथे
घटाववानां छे. ७७. नर ‘अर्जुन'. ७८. उम्मुक्ककंपु. मुनिपक्षे कंप एटले 'कलंक,' 'पाप;' सरोवरपक्षे कंप एटले (पङ्कनो
__ व्यत्यय ?) 'कांय,' 'कादव.' ७९. दोसायर (दोषाकर). 'चंद्र' अने 'दोषनो समूह धरावतो' बने अर्थ- अहीं सूचन छे.
ओमाणण (अवमानना)'अपमान' एम अर्थ लीधो छे. विकल्पे ओमाण ण पावइ
एम शब्दविभाग करी 'उपमानने पात्र नथी' एम लई शकाय. ८५. हरियंदणेण (हरिचन्दनेन) रूप तृतीया एक व च न नुं छे, पण संदर्भमां बहुवचननो
अर्थ ज घटे छे. ८७. सामान्य रीते पद्धडीछंदनो पाद चार चतुष्कल गणोनो वनेलो होय छे. पण अहीं उत्तरार्धमा
आसिसी देइमां बे चतुष्कलोनो संश्लेष ( fusion ) करेलो जोवामां आवे छे. ९२. जिं हंतइ. सति सप्तमीनो प्रयोग छे, पण जिं रूप तृतीयानुं छे. अपभ्रंशमा घणी वार
तृतीयाना अर्थमां सप्तमीनु अथवा तो सप्तमीना अर्थमां तृतीयानुं रूप वपराय छे. ९३. बुद्धिमया सीधु संस्कृत रूप तुद्धिमता परथी ज साध्युं छे. १०३. मुळ पाठ मंसुनो याहिलासु साथे प्रासमेळ न थतो होवाथी मासु एम सुधार्यु छे.
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