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________________ प्रास्ताविक विचार बहुत बड़ी प्रशस्तियां हैं उनमें बहुत कुछ विस्तृत वर्णन और अन्यान्य कई ऐतिहासिक बातें भी उल्लिखित मिलती हैं। उदाहरण खरूप ऐसी एक-दो बडी प्रशस्तियोंका परिचय भी यहां देना उपयुक्त होगा । क्रमाङ्क ५ वाली प्रशस्तिः अच्छी ,बडी प्रशस्ति है। इसके कुल ३७ पध हैं । यह प्रशस्ति देवचन्द्र सूरि [सुप्रसिद्ध आचार्य हेम चन्द्र के महान् गुरु ] के बनाये हुए शान्ति नाथ चरित्र के अन्तमें लिखी हुई उपलब्ध हुई है। यह पुस्तक पादे न के, संघवी पाडा के नामसे प्रसिद्ध प्राचीन ताडपत्रीय भण्डारमें सुरक्षित है । इसे सं. १२२७ में, पाटन के रहनेवाले प्राग्वा ट वंश (पोर वाड जाति) के श्रेष्ठी राह ड ने लिखवाया है । जिस समय यह पुस्तक लिखी-लिखाई गई उस समय वहां पर, 'सुश्रावक' ऐसा राजा कुमार पाल राज्य कर रहा था और वहीं के परमानन्दा चार्य नामक जैन सूरिको यह पुस्तक समर्पित की गई थी। इस प्रशस्तिमें पुस्तकके लिखानेवाले राह ड के पूर्वजों आदिका परिचय इस प्रकार दिया गया हैपृथ्वीतलमें जिसका मूल और विस्तीर्ण शाखायें फैली हुई हैं और जो धर्मके हेतुभूत ऐसे अनेक पर्वोकी परंपरासे समृद्ध हो कर अनेक गुणोंसे पूर्ण है ऐसा प्राग्वाट नामका विशाल वंश पृथ्वीमें उदित और विदित है । इस वंशमें जन्म लेनेवाला और तीर्थभूत ऐसे सत्य पुर (मार वा ड का आधुनिक सा चोर) से आया हुआ सिद्ध ना ग नाम का एक विशिष्ट ऐसा श्रेष्ठी हुआ जिसको अंबिनी नामक पत्नी थी। उनके पो ढ क, वीरड, वर्द्धन और द्रोण क नामक ये चार पुत्र हुए जो बडे प्रसिद्धि पानेवाले हुए। इन्होंने सोनेके जैसी कान्तिवाली पित्तलकी एक सुन्दर और उत्तम ऐसी शान्तिनाथ तीर्थकरकी प्रतिमा बनवाई - जो अभी (अर्थात् प्रशस्ति लिखनेवालेके समयमें) द धिप.द्र के शान्तिनाथके मन्दिरमें पूजी जाती है। पोढ क के....."देवी नामक पत्नी हुई जिसके आम्बु दत्त, आम्बु वर्द्धन और सजन नामक ये तीन गुणवान् पुत्र हुए। इस पो ढक ने, पूर्णिमाके चन्द्रमाकी जैसी उज्ज्वल कांतिवाली निर्मल पाषाणकी पार्श्व और सुपार्श्व जिनकी दो मूर्तियां बनवाई जो मडाहत (आबू के पासमें आधुनिक मढार) गामके महावीर जिनके मन्दिरमें प्रतिष्ठित हैं। पोढक की दो पुत्रीयां थी जो (पीछेसे साध्वी बनकर) यशः श्री और शि वा देवी नामक महत्तरा पदको धारण करनेवाली बनी। .......... ...सजन को महल च्छि नामक पत्नी हुई जो बडी दानशीला थी। उनके विश्वप्रसिद्ध बडे रूपवान् और सब जनोंका समाहित करने वाले ऐसे पांच पुत्र हुए । इनके नाम इस प्रकार थे-धवल, वीसल, देशल, राहड और बाहराघवाल को अपनी भल्लणी नामक पत्नीसे वीरच न्द्र और देवचन्द्र नामक दो पुत्र हुए। इनमेंसे वीर चन्द्र के विज य, अजय, राज, आम्ब, ‘स रण आदि पुत्र हुए और देव चन्द्र को देव राज नामका पुत्र हुआ।धवल को एक पुत्री थी जिसका नाम सिरी था। बीसल और देशल नामक दोनों भाई निरपल्य रहै-उनको कोई सन्तान नहीं हुई । राह ड का लघु भ्राता जो बाह ड था वह जनप्रिय हो कर उसकी स्त्री जिनमति और पुत्र जसडुक हुए। ..सजन के दो पुत्रियां थी जिनमें पहली शांति का, जिसके आ शु का दि पुत्र हुए, और दूसरी धांधि का थी। ..... इन भाईयोंमें जो रा हड था वह विशेषरूपसे गुणवान्, बुद्धिशाली, सुजनप्रिय, सुशील, धर्मप्रिय और उदारचेता था। वह मेरुकी तरह उन्नतात्मा, सुवर्णवाला, और मध्यस्थभावको धारण करनेवाला था । वह विधिपूर्वक जिनकी पूजा करता, साधुओंकी स्तुति करता, उनका धर्मोपदेश सुनता, अर्थिजनोंको दान देता, यथाशक्ति तप करता, और गृहस्थोचित शीलका पालन करता । उसकी दे म ति नामक पत्नी थी जो बडी धर्मार्थिनी, दान देने बाली और सदा अपने पतिका चित्ताराधन करनेवाली थी । इनके ४ पुत्र हुए जो राजाकी तरह प्रतिष्ठा पानेवाले, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002781
Book TitleJain Pustak Prashasti Sangraha 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1943
Total Pages218
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size14 MB
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