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________________ विवरण मेखलायुक्त तीन चौकियों पर अधिष्ठित यह प्राचीन स्तम्भ' जिनेन्द्र गजरथ प्रतिष्ठा महोत्सव के समय यहाँ मानस्तम्भ के रूप में स्थापित किया गया है। स्तम्भ के निचले भाग में चार देवकुलिकाएँ हैं। उनमें उत्तर की ओर धरणेन्द्र-पद्मावती, पूर्व में गरुडवाहिनी दशमुखी चक्रेश्वरी, दक्षिण में द्वादशभुजी (सम्भवतः मयूरासीना) देवी और पश्चिम में वृषभारूढा अष्टभुजी देवी का अंकन इसके पश्चात् ऊपर के लघुकोष्ठकों तक खजुराहो-जैसी भव्यता से पुष्प-पत्रों को उत्कीर्ण किया गया है। इन (पुष्प-पत्रों) के मध्य चारों ओर 3 फुट 9 इंच लम्बी अत्यन्त सुन्दर श्रृंखलाओं से घण्टियाँ लटक रही हैं। इसके पश्चात् चतुर्दिक् चार कोष्ठकों में से ऊपर की ओर के कोष्ठक के मध्य में आचार्य परमेष्ठी उपदेश-मुद्रा में पद्मासन में अंकित हैं तथा उनके दोनों ओर एक-एक साधु पीछी दबाये हुए दर्शाये गये हैं, किन्तु उनके कमण्डलु अदृश्य हैं। इनके दोनों ओर दो-दो भक्त अंजलिबद्ध विनयावनत दिखाये गये हैं, उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी सहज ही दर्शक की दृष्टि अपनी ओर आकृष्ट करती है।। पूर्व की ओर संवत् 1116 के दो पंक्तियों के अभिलेख के ऊपर वहाँ सात आकृतियाँ स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। कदाचित् वहाँ ‘आर्यिका' का उपदेश अंकित दिखाया गया है। उपदेशरत आर्यिका के दोनों ओर तीन-तीन श्राविकाएँ सुसज्जित वेशभूषा में उपदेश श्रवण कर रही हैं। वे अंजलि-मुद्रा में विनयावनत हैं, उनके आभूषण तथा वस्त्र स्पष्टतया देखे जा सकते हैं। दक्षिण की ओर मध्य में एक 'आर्यिका' उपदेशरत हैं, उनकी पीछी और कमण्डलु-दोनों ही अंकित हैं, इनके दोनों पावों में क्रमशः एक-एक आर्यिका, तत्पश्चात् दो-दो श्राविकाएँ अंजलि-मुद्रा में विनयावनत आसीन दिखाई गयी हैं। पश्चिम में भी सात आकृतियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं, मध्य में उपाध्याय परमेष्ठी उपदेश मुद्रा में अंकित हैं। उनके दोनों पार्यों में एक-एक साधु और तत्पश्चात् विनयावनत अंजलिबद्ध दो-दो श्रावक बैठे दिखाये गये हैं। इन लघु कोष्ठकों के ऊपर एक उभारदार पाषाण का आच्छादन देकर उपरिवर्ती देवकुलिकाओं में से दक्षिण की ओर सप्त फणावलि सहित पार्श्वनाथ कायोत्सर्गासन में अंकित हैं। शेष तीनों ओर एक-एक तीर्थंकर कायोत्सर्गासन में उत्कीर्ण हैं। देवकुलिकाओं की शिखराकृतियों के ऊपर लघु आमलक और कलश हैं। 1. दे.-चित्र संख्या 451 2. दे.-चित्र संख्या 111। 3. दे.-चित्र संख्या 112। 76 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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