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अभिलेख
1. प्रारम्भिक
प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति, कला और पुरातत्त्व के अध्ययन में देवगढ़ स्मारकों और मूर्तियों द्वारा ही नहीं अपितु अभिलेखों द्वारा भी सहायक है। यहाँ लगभग 300 छोटे-बड़े अभिलेख प्राप्त हुए हैं। उनका विविध दृष्टियों से अध्ययन किया जाय, इसके पूर्व सामान्य दृष्टि से अभिलेखों का महत्त्व जान लेना उपयोगी होगा । इतिहास के स्रोतों में साहित्य के पश्चात् अभिलेखों का ही महत्त्व सर्वाधिक है । विभिन्न राजवंशीय अभिलेखों में निर्दिष्ट नगर, सीमा, मार्ग तथा विजययात्रा आदि के उल्लेखों से भौगोलिक ज्ञान की वृद्धि होती है । शासक तथा गुरु आदि की परम्परा का ज्ञान भी अभिलेखों से होता है। शासनप्रणाली और सामाजिक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। धार्मिक जीवन की झाँकी मिलती है। आध्यात्मिक प्रगति का परिचय तो मिलता ही है, साथ ही अभिलेखों से आर्थिक स्थिति का विस्तृत ज्ञान भी प्राप्त होता है । साहित्य के विभिन्न अंगों में अब अभिलेखों को भी एक माना जाने लगा है उनमें कभी-कभी अत्यन्त उच्चकोटि का काव्यसौन्दर्य भी दिखाई पड़ता है । अभिलेखों में प्रयुक्त लिपियों और भाषाओं की विविधता तथा क्रमिक विकास के मूल्यांकन से लिपिशास्त्र और भाषाशास्त्र के लेखन में अनिवार्य सहायता मिलती है। अभिलेखों में तिथियाँ और संवत् उत्कीर्ण कराने की परम्परा भी रही है, इससे कालगणना में महत्त्वपूर्ण सुविधा होती है ।
2. अभिलेखों के स्थान और उद्देश्य
अभिलेख, उद्देश्य के अनुकूल भिन्न-भिन्न स्थानों पर उत्कीर्ण कराये जाते थे। राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजधानी, जयस्कन्धावार, राज्यों के सीमान्त और जयस्तम्भ आदि स्थान चुने जाते थे । प्रशासनिक उद्देश्यों से उत्कीर्ण किये
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