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________________ वाद्ययन्त्र वाद्य अनेक प्रकार के होते थे--जिनमें झाँझ, मँजीरा, मृदंग, ढोलक, वेणु, वीणा, इकतारा, तुरही (बिगुल), तमूरा, घण्टा, शंख आदि मुख्य हैं। कुछ स्त्रियाँ और पुरुष हाथ से भी ताल देते थे। खजुराहो आदि विभिन्न स्थानों की भाँति यहाँ भी अनेक प्रकार के वाद्यों का प्रयोग होता था। अन्य साधन कुछ लोग हाथी की पीठ पर उछल-कूद करते हुए अंकित किये गये हैं। उस समय कदाचित् इस प्रकार का कोई खेल होता था। एक मनुष्य व्याघ्र पर आसीन दिखाया गया है। इस प्रदेश में व्याघ्र अधिक होते थे। अतः उसे पालतू व्याघ्र माना जा सकता है। इसी प्रकार एक मनुष्य वृक्ष पर चढ़ता हुआ चित्रित है। वृक्ष पर फल नहीं दिखाये गये हैं। अतः उसका उद्देश्य या तो मनोरंजन हो सकता है या किसी आक्रान्ता आदि से अपनी रक्षा। तत्कालीन मानव आमोद-प्रमोद के लिए, यदा-कदा मकर पर भी सवारी करता था। 8. आर्थिक जीवन यदि मन्दिरों और मूर्तियों की विपुलता, मूर्तियों में चित्रित वेशभूषा, नृत्य और संगीत की मण्डलियों तथा समय-समय पर आयोजित होनेवाले प्रतिष्ठा आदि समारोहों को ही मापदण्ड माना जाए तो यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि देवगढ़ का समाज आर्थिक दृष्टि से पर्याप्त सम्पन्न था। यद्यपि राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्व का केन्द्र न होने से यह स्थान अधिक समृद्ध रहा होगा, ऐसा प्रतीत नहीं होता। पुनरपि इसकी गणना पवाया (पद्मावती), एरन (ऐरिकिण) और विदिशा-जैसे कला समृद्ध नगरों में की जाती थी। क्योंकि यह एक बड़े राजमार्ग पर स्थित था। ___ और गुप्तकाल में इसका सम्बन्ध उत्तर में पवाया से, दक्षिण में एरन, विदिशा, उदयगिरि और साँची से, पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में उज्जैन और बाघ से तथा झाँसी और कानपुर होकर प्रयाग, काशी और पाटलिपुत्र (पटना) से था। इसकी 1. दे.-मं. सं. 11 के महामण्डप का प्रवेश-द्वार, तथा मं.सं. 27 में स्थित चौबीस पट्ट। 2. दे-म.सं. 11 के महामण्डप का प्रवेश-द्वार । 3. दे.-म. सं. 28 का प्रवेश-द्वार। 4. दे. --मं. सं. 18 के महामण्डप के प्रवेश-द्वार की देहरी पर। 5. पं. माधव स्वरूप वत्स : दो गुप्ता टेम्पल एट देवगढ़ : (मेम्वायर्स ऑफ़ दि आर्योलाजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया, संख्या 70) (दिल्ली, 1952), पृ. ।। सामाजिक जीवन :: 249 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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