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पहनते थे, सोने और रत्नों के अलंकार धारण करते थे, साधुओं और तीर्थंकरों की उपासना में समय व्यतीत करते थे और गीत तथा नृत्य में गहरी रुचि रखते थे। उच्चवर्ग की स्त्रियाँ भी सौन्दर्य की महत्ता समझती थीं। वे अपने पति से मिलने, किसी मण्डली में सम्मिलित होने या किसी सार्वजनिक स्थान पर जाने से पूर्व प्रसाधन करना न भूलती थीं, इसके लिए वे दर्पण आदि की सहायता भी लेती थीं। निम्नवर्ग की स्त्रियाँ जो अपेक्षाकृत कम सुसज्जित और संस्कृत दिखाई देती थीं, उनके साथ परिचारिकाओं आदि के रूप में रहा करती थीं। निम्नवर्ग के पुरुष भी उच्चवर्ग के पुरुषों की परिचर्या और वाहनों की व्यवस्था आदि करते थे।' यहाँ किसी भी कृति में कोई भी स्त्री अवगुण्ठन धारण किये नहीं दिखाई पड़ी।
2. चतुर्विध संघ
देवगढ़ के समाज को चतुर्विध-संघ के रूप में विभाजित करना अधिक उपयुक्त होगा।
साधु : प्रथमवर्ग साधुओं का था। ये लोग पंच-परमेष्ठियों में से अन्तिम तीन परमेष्ठी माने जाते रहे हैं। आचार्य तीसरे परमेष्ठी थे। ये सम्पूर्ण साधुसंघ के, जिसमें साध्वियाँ भी सम्मिलित थीं, संचालक होते थे। चौथे परमेष्ठी उपाध्याय कहलाते थे जिनका कार्य साधुओं और साध्वियों को नियमित रूप से तथा श्रावक-श्राविकाओं को समय-समय पर शिक्षा देना था। साधुओं का यह वर्ग देवगढ़ में सर्वाधिक सक्रिय और कर्तव्यनिष्ठ था, जैसा कि वहाँ प्राप्त अनेक पाठशाला दृश्यों से प्रमाणित होता
1. वहुमूल्य वस्त्रों तथा आभूषणों आदि के लिए दे.-चित्र सं. 6, 7, 18-21, 33, 35, 93, 95-112,
111-119, 121 तथा 122 आदि। 2. दे...- चित्र सं52.53.64.76,77,79 से 88 तक तथा 1091 3.दे.-चित्र सं. 16, 23, 35,57, 116, 118 आदि। 4. दे.-चित्र सं. 114, 116 से 121 तक आदि । 5. (अ) मं. सं. 11 की दूसरी मंजिल पर महामण्डप के द्वार पक्ष (बायें) पर एक दर्पणधारिणी
शचिस्मिता का आकर्षक अंकन है। वह अपने बायें हाथ में दर्पण लिये है और दायें से ओष्ठ को प्रसाधित करती प्रतीत होती है। दे.-चित्र सं. 117। (ब) मं. सं. 18 के महामण्डप के प्रवेश-द्वार पर दर्पण के सहारे अपनी ललाटिका को व्यवस्थित करती हुई एक सुन्दरी का सुन्दर अंकन है।
दे..-चित्र सं. 1161 6. दे.-चित्र सं. 6, 7, 21, 33, 95, 99, 100, 104, 108 आदि। 7. दे.--मं. सं. 11 और 12 के प्रवेश-द्वार की देहरी। (चित्र सं. 18)। 8. दे.-चित्र सं. 6, 7, 16, 21, 33, 35, 93, 95-112, 119 आदि। 9. दे.-चित्र सं. 75, 77-82 तथा 85 आदि। एवं कुछ महत्त्वपूर्ण उपाध्याय मूर्तियों के लिए दे.
-चित्र सं. 83 आदि।
सामाजिक जीवन :: 233
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