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________________ गोह : तपस्या-रत बाहुबली के शरीर पर अन्य विषैले जन्तुओं के साथ कभी-कभी गोह भी चढ़ा हुआ अंकित किया गया है। ___ मकर : मकर के अंकन गंगा के वाहन और मकरमुखों के रूप में यहाँ बहुत मिलते हैं। कच्छप : कच्छप का आलेखन यमुना के वाहन के रूप में दिखाया गया है। मत्स्य : मत्स्य-युगल सोलह मंगल-स्वप्नों के अन्तर्गत अंकित हुआ है।' छिपकली : छिपकली को बाहुबली के शरीर पर चढ़ा हुआ उत्कीर्ण किया गया वृश्चिक : यहाँ वृश्चिक भी बाहुबली के शरीर पर रेंगते हुए मिलते हैं।' 13. आसन और मुद्राएँ देवगढ़ की जैन कला में आसनों और मुद्राओं का आलेखन आनुषंगिक रूप में हुआ है, खजुराहो आदि की भाँति उद्देश्यपूर्वक नहीं। इसका कारण कदाचित् यही हो सकता है कि देवगढ़ कौलों और कापालिकों के प्रभाव से प्रायः मुक्त रहा, जिनकी उत्तानभोगवादी नीति के फलस्वरूप खजुराहो, कोणार्क और भुवनेश्वर की आसन-प्रधान एवं मुद्रावहुल कला का विस्तार हुआ। तथापि देवगढ़ में कुछ ऐसी मुद्राएँ और आसन प्राप्त होते हैं, जो अन्यत्र कदाचित् ही प्राप्त होंगे। उदाहरण के लिए उपाध्याय वितर्क मुद्रा में तथा तीर्थंकर की माता अर्ध-पर्यंकासन में उत्कीर्ण की गयी हैं। (अ) आसन यहाँ तीर्थकर मूर्तियाँ नियमानुसार पद्मासन' और कायोत्सर्गासन10 में उत्कीर्ण 1. दे.-चित्र सं. 88। 2. दे.-चित्र सं. 6, 7, 18 आदि। 3. दे.-चित्र सं. 6, 7, 18, 21, 33 आदि। 4. दे.-चित्र सं. 19-20। 5. दे.--चित्र सं. 861 6. दे.-चित्र सं. 87। 7. दे.-चित्र सं. 741 8. दे.-चित्र सं. 931 9. कुछ पद्मासन मूर्तियों के लिए दे.-चित्र सं. 50-54, 57, 60, 61, 66, 67, 71, 72, 74 आदि । 10. कुछ कायोत्सगसिन मूर्तियों के लिए दे.-चित्र सं. 55, 56, 58-60, 62-65, 68-70, 72, 73, 75, 76 आदि। मूर्तिकला :: 207 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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