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जिनकी गोद में एक-एक बालक है। इस प्रकार के दिलहों को उत्कीर्ण करने की पद्धति मध्यकाल में प्रचलित रही ऐसे निदर्शन पाटन, गिरनार, आबू आदि में प्राप्त होते हैं, परन्तु ओसिया का दिलहा अबतक उपलब्ध ऐसे दिलों में प्राचीनतम है । 2
इस प्रकार हमने यह देखा कि तीर्थंकर की माता का अंकन कदाचित् शक- काल (ई. पू. प्रथम शती) से प्रारम्भ हुआ । उक्त दोनों उदाहरणों में माता खड़ी दिखाई गयी है, जबकि देवगढ़ के उक्त दोनों उदाहरणों में उसे एक विशिष्ट मुद्रा में लेटी हुई अंकित किया गया है। कलाकार को यह अनोखी सूझ कहाँ से प्राप्त हुई, यह विचारणीय है । अमरावती के स्तूप में संगमरमर का एक उत्कीर्ण फलक (5 फुट 2 इंच x 3 फुट 2 इंच) मिला है। लगभग प्रथम शती के इस फलक पर मायादेवी का स्वप्न और बुद्ध का जन्म अंकित किया गया है ।
बुद्ध की माता का इसी प्रकार का एक प्रस्तरांकन (ई. प्रथम शती) भरहुत में भी हुआ, जो अब कलकत्ता संग्रहालय में सुरक्षित है। देवगढ़ के ही दशावतार मन्दिर में अनन्तशायी विष्णु का प्रभावोत्पादक अंकन हुआ है। उदयगिरि (विदिशा ) की छठवीं गुफा में अनन्तशायी विष्णु की विशाल आकृति उत्कीर्ण है। प्रिंस आव वेल्स म्युजियम, बम्बई में ऐहोल से प्राप्त एक मूर्ति शेषशायी विष्णु की भी प्रदर्शित है।" एरण में शेषशायी विष्णु (ई. सातवीं शती) की आकर्षक मूर्ति प्राप्त है । विदिशा में भी इनकी अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध हैं । इन तथा ऐसे ही अन्य मूर्त्यंकनों के रहते हुए जैन भक्त की यह स्वाभाविक इच्छा रही होगी कि उसके धर्म - स्थानों पर भी ऐसे ही भव्य और प्रेरक मूर्त्यांकन उपलब्ध हों ।
1. विस्तृत वर्णन के लिए देखिए डॉ. उ.प्रे. शाह : जर्नल आफ़ दी इण्डियन सोसायटी आफ़ ओरियण्टल आर्ट, भाग 9, पृ. 48 1
2. डॉ. उ. प्रे. शाह : स्टडीज़ इन जैन आर्ट, पृ. 181
3.
(अ) हर्मन गट्ज आर्ट आफ़ दी वर्ल्ड (इण्डिया), (बम्बई, 1959), पृ. 58
(ब) लारोसी : एनसाइक्लोपीडिया आफ़ मिथालोजी एडीटेड इन फ्रेंच बाई फेलिक्स जीरण्ड एण्ड ट्रान्सलेटिड इन इंग्लिश बाई रिचर्ड एलडिंग्टन एण्ड डेलानो एम्स ( लन्दन, 1959), पृ. 363।
(स) आर. सी. मजूमदार दी एज़ आफ़ इम्पीरियल - यूनिटी (बम्बई, 1953 ), फलक 16, आकृति 34 |
4. दक्षिणी बहिर्भित्ति की देवकुलिका में 4 फ़ी. 11 इंच x 3 फ़ी. 10 इंच के आकार में अंकित । 5. इसके विस्तृत वर्णन के लिए दे. - (अ) पं. माधवस्वरूप वत्स दी गुप्ता टेम्पल एट देवगढ़ (ए. एस.आइ. मेम्वायर क्र. 70), पृ. 14-15 तथा फलक 10 (ब)। (ब) गोपीनाथ राव : एलिमेण्ट्स ऑफ़ हिन्दू आइनोग्राफी, जिल्द एक, पृ. 110-12 तथा फलक 32 । (स) विंसेण्ट ए. स्मिथ ए हिस्ट्री आफ फाइन आर्ट इन इण्डिया एण्ड सीलोन, फलक 64 (व) ।
6. लुइस फ्रेडरिक इण्डियन टेम्पल्स एण्ड स्कल्पचर ( लन्दन, 1959), पृ. 212 तथा फलक 224, आकृति 189
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