SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं ।' दोनों का वाहन गरुड़ और परिकर विस्तृत है । दोनों के ऊपर तीर्थंकर की पद्मासन लघु आकृति अंकित है। दोनों के गरुड़ों की सशक्त उड़ान और ओजस्वी आकृति मानों सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को क्षण-भर में ही नाप लेने की ठान बैठी है । स्वयं देवियाँ, एक ओर सौन्दर्य और गरिमा की साक्षात् मूर्ति बनी हैं, दूसरी ओर वे प्रचण्ड तेज और विश्व-नियामक शक्ति की अवतार प्रतीत होती हैं। उनके हाथों के गतिमान् चक्र मानों सम्पूर्ण विश्व से पापियों का दमन करके ही चैन लेंगे जबकि अक्षमाला के साथ अभयमुद्रा में दिखनेवाले एक देवी के हाथ मानों समग्र चराचर विश्व के सन्ताप और दारिद्र्य को क्षण-भर में ही शान्त कर देंगे । चक्रेश्वरी की अनुपम मूर्ति : देवगढ़ में चक्रेश्वरी का अंकन अनेक स्थानों पर हुआ है पर बारहवें मन्दिर के अन्तराल की बायीं मढ़िया से लाकर साहू जैन संग्रहालय में स्थापित की गयी मूर्ति में जो अलौकिक भाव-भंगिमा समाविष्ट है वह देवगढ़ में ही नहीं, कदाचित् सम्पूर्ण भारतीय कला में दुर्लभ है। चार फुट ऊँचे एवं दो फुट छह इंच चौड़े शिलाफलक पर उत्कीर्ण दो फुट ग्यारह इंच ऊँची और एक फुट ग्यारह इंच चौड़ी यह गरुडवाहिनी देवी अपने एक हाथ में अक्षमाला, एक में शंख और सात में चक्र धारण किये हैं । उसके शेष 11 हाथ खण्डित हो गये हैं । गरुड़ की आकृति पंखधारी मनुष्य के समान है। उसका श्मश्रुयुक्त तेजस्वी मुखमण्डल, उसकी सशक्त उड़ान का परिणाम प्रतीत होता है । बायें हाथ और मस्तक द्वारा वह देवी को धारण कर रहा है । विभिन्न आभूषणों के अतिरिक्त उसका यज्ञोपवीत और सेनापति की-सी टोपी उल्लेखनीय हैं । देवी के परिकर में ऊपर दायें लक्ष्मी और बायें सरस्वती तथा मालाधारी विद्याधर-युगल उल्लेखनीय हैं। संगीतमण्डली द्वारा पूजित होते हुए तीन तीर्थंकर इस यक्षी के मस्तक पर विराजमान हैं । चक्रेश्वरी स्वयं भक्ति की अवतार प्रतीत होती है । उसके आभूषण और वेशभूषा के कलात्मक अंकन दर्शक की दृष्टि को आकृष्ट किये विना नहीं रहते । चक्रेश्वरी की सुन्दर मूर्ति: साहू जैन संग्रहालय में ही स्थित एक अन्य शिलाफलक पर अंकित चक्रेश्वरी भी कला का श्रेष्ठ निदर्शन है। 4 फुट 4 इंच ऊँचे और 2 फुट 7 इंच चौड़े शिलाफलक पर उत्कीर्ण इस गरुड़वाहिनी यक्षी के सभी (बीस) हाथ सुरक्षित हैं, जिनमें चक्र, खड्ग, मुद्गर, त्रिशूल, धनुष आदि विविध 1. इनकी तुलना मथुरा - पुरातत्त्व - संग्रहालय में प्रदर्शित चक्रेश्वरी की दशभुजी मूर्ति (सं. डी. 6) (9वीं 10वीं शती) से की जा सकती है। और भी द्रष्टव्य-नीलकण्ठ पुरुषोत्तम जोशी मथुरा की मूर्तिकला ( मथुरा, 1965), पृ. 34 तथा आकृति 93 | 2. दे. - चित्र सं. 99। 3. दे. - चित्र सं. 100 Jain Education International For Private & Personal Use Only मूर्तिकला : 151 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy