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________________ 4. कतिपय विशिष्ट मूर्तियाँ (अ) जटाओं की दृष्टि से उल्लेखनीय 1. मन्दिर संख्या 13 के कायोत्सर्ग तीर्थंकर : अब हम कुछ ऐसी मूर्तियों का उल्लेख करेंगे जिनका महत्त्व प्राचीनता की दृष्टि से तो है ही, उनकी अपनी कुछ विशेषताओं के कारण भी है। उदाहरण के लिए मन्दिर संख्या 13 के मण्डप में विद्यमान 5 फुट 10 इंच के शिलाफलक (बायें से दायें बीसवाँ ) पर उत्कीर्ण शान्तिनाथ की 4 फुट 7 इंच ऊँची कायोत्सर्गासन मूर्ति' दर्शनीय है । इस मूर्ति की प्रथम विशेषता यह है कि उसके आसन में बायें सिंह और दायें हिरण का अंकन है जबकि अन्यत्र, दोनों ओर सिंह का ही अंकन मिलता है। सिंह को सिंहासन का प्रतीक और हिरण को तीर्थंकर का चिह्न मान लें तो यह मूर्ति सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ की कही जानी चाहिए। या फिर सिंह और हिरण को एकत्र दिखाकर तीर्थंकर की तपस्या के अहिंसात्मक प्रभाव को प्रदर्शित करने की भावना भी इसमें सन्निहित हो सकती है। जटाओं की विशालता और विचित्रता इस मूर्ति की दूसरी विशेषता है । 2 जटाओं को सँभालने में कलाकार ने कदाचित् सर्वाधिक अभिरुचि दिखायी है । जटाओं को पीछे की ओर सँभालकर उनकी पाँच-पाँच लटें दोनों कन्धों पर झुलायी गयी हैं, कुछ लटों की ऊपर को उठी हुई चोटी बाँधी गयी है और बहुत-सी जटाएँ पीछे दोनों ओर लटका दी गयी हैं जो इतनी लम्बी हैं कि पिण्डलियों के भी नीचे तक आ पहुँची हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कलाकार तीर्थंकर को हिमालय मानकर उनके जटा - शिखर से ज्ञान गंगा को भूमण्डल पर अवतीर्ण करना चाहता हो, जैसा कि मध्यकालीन हिन्दी कवि श्री भूधरदास का कथन है: I 'वीर हिमाचल तैं निकसीं गुरु गौतम के मुख- कुण्ड ढरी है मोह - महाचल भेद चली जग की जड़ता सब दूर करी 11 ज्ञान- पयोनिधि माँहि रली बहु-भंग-तरंगनि सौं उछरी है। ता शुचि शारद गंग-नदी प्रति मैं अँजुरी कर शीश धरी है || 1 इस मूर्ति में कला-प्रदर्शन को ही नहीं, भावों को भी प्रधानता दी गयी है । यह आश्चर्य की बात है कि ललाट पर दर्शित अलकों की दो छोटी-छोटी घुँघराली 1. दे. - चित्र सं. 68 । 2. तुलना के लिए देखिए चित्र सं. 69 और 73 । 3. कन्धों पर झूलती हुई जटाओंवाली कुछ मूर्तियाँ मथुरा-संग्रहालय में भी प्रदर्शित हैं। 4. दे. - बृहज्जनवाणी संग्रह, पं. पन्नालाल बाकलीवाल द्वारा मध्यकालीन कवि भूधरदास के पार्श्वनाथपुराण से संकलित ( कलकत्ता, 1937 ), पृ. 471 138 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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