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की ऊंचाई 6 फट ।) इंच तथा एक कन्धे से दूसरे कन्धे तक की चौड़ाई 2 फुट 1) इंच है। आसन में कमल का चिह स्पष्ट है अतः इसे इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथ की प्रतिमा कहना होगा। इसके परिकर और अलंकरण का संक्षेप, अष्ट-प्रातिहार्यों (भामण्डल के अतिरिक्त) की अनुपस्थिति और कलात्मकता आदि के साथ हाथों और पैरों की समतलता इसे आठवीं शती की कृति सिद्ध करते हैं। आदिनाथ
इसी काल (आठवीं शती ई. के आसपास) की, आदिनाथ' की एक पद्मासन मूर्ति मन्दिर संख्या दो में (बायें से दायें, नवम स्थान पर, 4 फुट 7 इंच - 2 फुट 7 इंच के शिलाफलक पर उत्कीर्ण) अवस्थित है। अष्ट-प्रातिहार्यों के अतिरिक्त, इसके परिकर में दायें एक अन्य लघु पद्मासन तीर्थंकर का अंकन इस मूर्ति की विशेषता है। इसी मन्दिर के चौथे शिलाफलक (4 फुट 5 इंच x 2 फुट 7 इंच) पर आदिनाथ की ही एक और पद्मासन मूर्ति उल्लेखनीय है। इसके सिंहासन के नीचे एक पंक्ति का लेख है। जिसमें संवत् 1052 और दाता का नाम उत्कीर्ण है। आदिनाथ
यहीं (मं. सं. दो) दसवें शिलाफलक (4 फुट 9 इंच x 2 फुट 10 इंच) पर आदिनाथ की एक और पद्मासन मूर्ति निर्मित है। इसके सिंहासन के नीचे एक पंक्ति के लेख में संवत् 1122 अंकित है तथा परिकर में तीर्थंकरों की दो लघु-आकृतियाँ (पद्मासन में) अभिलिखित हैं। अष्ट-प्रातिहार्यों में, एक दूसरे की ओर सस्नेह देखते हुए दो विद्याधरयुगल हमें बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं। वृषभनाथ
मन्दिर संख्या एक के मण्डप में सामने की ओर (पूर्व में) मध्य में स्थित वृषभनाथ की पद्मासन मूर्ति भी उल्लेखनीय कही जा सकती है, जिसका लम्बा श्रीवत्स उसके बारहवीं शती की होने की पुष्टि करता है। चतुर्विंशति पट्ट
चौबीसी (चतुर्विंशति) की दृष्टि से अनेक उल्लेखनीय मूर्ति-फलक मन्दिर संख्या 12 के महामण्डप में जड़े हुए हैं।
1. दे.-चित्र 60। 2. सन् 1917-18 में श्री दयाराम साहनी ने भी इस मूर्ति को इसी मन्दिर में देखा था। द्रष्टव्य-ए.
प्रो.रि., परिशिष्ट अ, अभिलेख क्र. 15, पृ. 131 3. दे.-चित्र सं. 671 4. एक मूर्तिफलक के लिए दे.-चित्र सं. 64 ।
मूर्तिकला :: 137
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