SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनकी तकिया के रूप में (पृष्ठ भाग में) उसकी कुण्डली भी दिखायी।' इतना ही नहीं, इस सबके अतिरिक्त, देवगढ़ में पार्श्वनाथ की दो ऐसी मूर्तियाँ 2 भी मिली हैं, जिनके आसन के रूप में सर्प की कुण्डली भी दिखाई गयी है । इसे शेषशायी विष्णु का अनुकरण ही मानेंगे। शेषशायी विष्णु का एक विचित्र किन्तु सराहनीय अनुकरण और किया गया । तीर्थंकर की माता एक आकर्षक मुद्रा में लेटी हैं ।" और देवियाँ विभिन्न प्रकार से उनकी सेवा में संलग्न हैं। माता के गौरव और स्नेह के प्रतीक चौबीसों तीर्थंकरों का भी अंकन इसमें द्रष्टव्य है । कुछ तीर्थंकरों के साथ जटाओं के अंकन में तो भट्टारक शिव को भी पीछे छोड़ देते हैं। शिव की जटाएँ लम्बी अवश्य रहती हैं परन्तु वे प्राय: जूड़े में बँधी रहती हैं, जबकि कुछ तीर्थंकरों की मूर्तियों के साथ जटाएँ इतनी अधिक और लम्बी 1. (अ) देखिए - चित्र सं. 69 और 70 (व) ऐसी ही कुछ मूर्तियाँ दूधई, क्षेत्रपाल (ललितपुर) और सेरान में भी हैं, जो कदाचित् देवगढ़ से भेजी गयी होंगी। ( स ) इसी प्रकार की एक कायोत्सर्ग दिगम्बर जैन मूर्ति (11वीं शती) (2 फुट 3 इं.) दक्षिण कनाडा के लेपीज लाजूली (बैन्दूर) में स्थित है, जिसके पृष्ठ भाग में एक मोटा कोबरा (सर्प) कुण्डली लगाये हुए तीर्थंकर के ऊपर सात फणों से छाया किये है। दे. - डॉ. एच.डी. सांकलिया : जैन आइकोनोग्राफी ए वाल्यूम ऑफ़ इण्डियन एण्ड इरानियन स्टडीज़ (वम्बई), पृ. 342 और फलक 1, 2 तथा 4 | 2. मं. सं. 15 के गर्भगृह में मूलनायक के वायें, तथा मं. सं. 25 के गर्भगृह में (अभिलिखित) अवस्थित मूर्तियाँ । दे. - चित्र सं. 71 । 3. कुण्डली का विस्तार यहाँ तक बढ़ा कि वह तीर्थंकर के आसन में ही समाप्त न होकर पृष्ठ भाग में तकिया के रूप में भी विद्यमान रहने लगी । देखिए - विदिशा पुरातत्त्व - संग्रहालय में, पाषाण प्रतिमा दीर्घा क्र. एक, मूर्ति क्र. 24 । 4. देवगढ़ में कुण्डली के मोड़ सघन और सर्प की मोटाई कम और अलंकृत दिखाई गयी है, जिससे उसके अंकन में कलाकार की विशेष अभिरुचि का पता चलता है, दूसरी ओर साँची के पुरातत्त्व संग्रहालय में सुरक्षित नागराज की कुण्डली विरल तथा सघन दिखाई गयी है । 5. हमारे इस कथन की पुष्टि विदिशा पुरातत्त्व - संग्रहालय (के बरामदे में सुरक्षित, प्रतिमा क्र. 24 ) की उस प्रतिमा से और भी अधिक होती है, जिसकी पृष्ठभागीय कुण्डली के मोड़ों में भी एक-एक नागी लिपटी दिखाई गयी है, जिसकी प्रेरणा स्पष्ट रूप से उन अनेक नागियों से प्राप्त हुई होगी जो शेषशायी विष्णु की सेवा में उपस्थित दिखाई जाती हैं। देखिए - उदयगिरि (विदिशा) की गुफा सं. 6 के शेषशायी विष्णु का दृश्य तथा इस प्रकार की अन्य प्रतिमाएँ । 6. दे. - चित्र सं. 93 । 7. यह मूर्ति मं. सं. चार के गर्भगृह की वायीं भित्ति में जड़ी है। ऐसी ही एक अन्य मूर्ति यहाँ के मं. सं. 30 में भी विद्यमान है, और इसी प्रकार की अनेक किन्तु कला की दृष्टि से कम आकर्षक मूर्तियाँ ग्वालियर के किले में भी उत्कीर्ण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only मूर्तिकला : 127 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy