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________________ कर सकते हैं। कुछ मूर्तियाँ आध्यात्मिक उद्देश्य से और कुछ लौकिक उद्देश्य से निर्मित हुई हैं। इस दृष्टि से भी उन्हें दो भागों में रख सकते हैं। परन्तु यहाँ की मूर्तियों का सुविधाजनक विभाजन हम दस वर्गों में करेंगे : 1. तीर्थकर, 2. देव - देवियाँ, 3. विद्याधर, 4. साधु-साध्वियाँ, 5. श्रावक-श्राविकाएँ, 6. युग्म और मण्डलियाँ, 7. प्रतीक, 8 पशु-पक्षी, 9. मुद्राएँ और आसन तथा 10. प्रकृति चित्रण | अब हम क्रमशः प्रत्येक वर्ग की मूर्तियों का सूक्ष्म अध्ययन करेंगे । 2. देवगढ़ की तीर्थंकर - मूर्तिकला का सामान्य अनुशीलन देवगढ़ में अन्य मूर्तियों की अपेक्षा तीर्थंकरों की मूर्तियाँ कई गुनी अधिक हैं । मुख्य रूप से आदिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, महावीर और शान्तिनाथ की ही मूर्तियाँ हैं । बहुसंख्यक मूर्तियों पर लांछन अंकित नहीं हैं।' प्रायः सभी शिलापट्टों पर उत्कीर्ण की गयी हैं । द्विमूर्तिकाएँ, त्रिमूर्तिकाएँ, सर्वतोभद्रिकाएँ और चतुर्विंशतिपट्ट प्रचुरता से उपलब्ध हैं । द्वारों पर भी तीर्थंकर मूर्तियों का अंकन हुआ है ।" प्रायः सभी मूर्तियों के साथ भिन्न-भिन्न रूप से कुछ परम्पराओं का निर्वाह किया गया है 3 | 1. कुछ मूर्तियों पर उत्कीर्ण लांछन शास्त्रीय मान्यताओं के विरुद्ध प्रतीत होते हैं। जैसे- जटाधारी मूर्तियों के साथ वन्दर (दे. मं. सं. 9 चित्र सं. 59), शंख (दे. - मं.सं. 13, चित्र 68 ), फणावलि (दे. - मं. सं. दो की कायो मूर्ति) तथा फणावलियुक्त मूर्तियों के साथ चकवा (दे. - जैन चहारदीवारी, चित्र संख्या 56 ) और अम्बिका यक्षी (दे. - मन्दिर संख्या 12 का महामण्डप, चित्र सं. 63) एवं आदिनाथ अभिलिखित होने पर भी सिंह लांछन (दे. - दिगम्बर जैन चैत्यालय में पीतल की मूर्ति) उक्त तथ्य की पुष्टि करते हैं I 2. मं. सं. 13, दो ( शिलापट्ट क्र. 5-6 ), 17, 26 आदि में स्थित तथा मं. सं. 12 के अंग शिखर में जड़ी हुई मूर्तियाँ (चित्र 25)। 3. दे. मं. सं. एक के मण्डप में जड़ी मूर्ति (चित्र सं. एक) मं.सं. एक के पृष्ठभाग में जड़ी मूर्ति । (चित्र 76), मं. सं. चार के गर्भगृह की पश्चिमी भित्ति में (चित्र 75 ), और भी देखिए - चित्र सं. 20, 32 आदि । 1. सर्वतोभद्र - मूर्तियाँ यहाँ के मानस्तम्भों पर (दे. - चित्र सं. 43-45 तथा 48 ) तो हैं ही, जैन चहारदीवारी ऊपर भी बहुत बड़ी संख्या में देखी जा सकती हैं (दे. - चित्र सं. 47 में चहारदीवारी वाला भाग ) । 5. चतुर्विंशति पट्टों के लिए दे. मं. सं. चार, बारह, सत्ताईस, उनतीस और साहू जैन संग्रहालय में सुरक्षित मूर्तियाँ तथा चित्र सं. 61, 65 और 751 6. दे. दूसरे कोट का प्रवेश-द्वार, हाथी दरवाजा, तथा मं.सं. 4, 5, 8वें का वायाँ द्वार, 9, 11 के दोनों मंजिलों के प्रवेश-द्वार, 12, 15, 16, 19, 20, 24 से 31 तक और लघु मन्दिर सं. 4, 5 तथा 6 के प्रवेश-द्वार और भी दे. - चित्र सं. 6, 18, 35, 81, 821 Jain Education International For Private & Personal Use Only मूर्तिकला : 125 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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