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________________ एक पंक्ति है, जिसमें साधारण स्तम्भों द्वारा देवकुलिकाओं का आभास प्रकट किया गया है। परन्तु कुछ देवकुलिकाओं में ही तीर्थंकर मूर्तियाँ अंकित हैं, कुछ में मान-स्तम्भों का आलेखन है, शेष अधिकांश अलंकरण-रहित हैं। इसके ऊपर दूसरी पंक्ति है। वह अपेक्षाकृत कम ऊँची है और उसमें कोई अलंकरण नहीं है। तीसरी पंक्ति की ऊँचाई लगभग प्रथम पंक्ति के बराबर है और उसमें सघन स्तम्भाकृतियों के अतिरिक्त कोई अंकन नहीं है। - इसका अर्धमण्डप आठं स्तम्भों पर आधारित है। वह इतना लम्बा है कि उसे अर्धमण्डप कहना उचित नहीं प्रतीत होता। प्रवेश-द्वार का अलंकरण गुर्जर-प्रतिहारकाल से बाद का, कदाचित् कलचुरि-कालीन प्रतीत होता है। महामण्डप काफी विशाल है। गर्भगृह का प्रवेश-द्वार भी अलंकृत है। उसमें 2 फुट 1 इंच ऊँची, 2 फुट 1 इंच चौड़ी और 6 फुट 5 इंच लम्बी वेदी है, उसपर वर्तमान में कोई प्रतिमा नहीं है। उसके नीचे महावीर की (सिंह का चिह्न अस्पष्ट) विशालाकार पद्मासन मूर्ति रखी है, उसमें संवत् 1105 का तीन पंक्तियों का लेख उत्कीर्ण है। उसमें मन्दिर के निर्माण और प्रतिष्ठा आदि का कोई उल्लेख नहीं है, जैसा कि श्री साहनी ने भ्रमवश लिख दिया है। वैसे भी मन्दिर के निर्माण या प्रतिष्ठा का उल्लेख प्रतिमा पर हो, यह बात असंगत है। महामण्डप के उत्तर-पूर्वी कोने में दूसरे तल के लिए सोपान मार्ग है।' सन् 1939 (फरवरी) में गजरथ प्रतिष्ठा के समय इसका जीर्णोद्धार कराया गया था। दूसरे तल पर अर्धमण्डप के वायें और दायें एक-एक वेदिका है, जिनकी बाह्यवेष्टनी के रूप में संयोजित शिलाएँ बाहर की ओर स्तन्भाकार अलंकरणों से युक्त हैं। महामण्डप का प्रवेश-द्वार अलंकृत है। उसके बायें द्वारपक्ष पर अंकित दर्पणधारिणी शुचिस्मिता हमें खजुराहो की जगत्प्रसिद्ध दर्पणधारिणी सुर-सुन्दरी का स्मरण कराती है। गर्भगृह के प्रवेश-द्वार पर अम्बिका अंकित है, जिससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि दूसरे तल के मूलनायक नेमिनाथ थे। जीर्णोद्धार के समय उनकी मूर्ति नीचे के तल में स्थानान्तरित कर दी गयी, जिसे आज भी वहाँ देखा जा सकता है। इसमें स्थित शान्तिनाथ की मूर्ति (स्थापित संख्या 1995) देवगढ़ की एकमात्र संगमरमर की मूर्ति है।' 1. देखिए...दवाराम साहनी : ए. प्रो. रि., 19918, 'भाग दो : परिशिष्ट ।' 15. ऑभलेख कमांक +5। 2. देखिए--विन्यास रूपरेखा, चित्र संख्या 38 । 3. देखिए --चित्र संख्या ।17। 1. इन पंक्तियां के लिखे जाने तक वहाँ निकटवर्ती ग्राम खजरिया (गालिनगर) से बरसागरन अपिटत मृतियाँ आयी हैं, जिनमें से कुछ संगमरमर की भी ।। 116 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक वन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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