SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गर्भगृह में विशालाकार तीर्थकर मूर्ति' और उसके दोनों ओर चँवरधारी इन्द्र तथा अम्बिका और द्वार के दोनों ओर (भीतर) अम्बिका मूर्तियाँ जड़ी हुई हैं। (2) मन्दिर संख्या 30 मन्दिर संख्या 30 (चित्र 34) गुप्तकालीन वास्तु का उत्कृष्ट निदर्शन है। उसका विन्यास (ले आउट) ग्रीक मन्दिरों से अनुप्राणित प्रतीत होता है। उसका स्तम्भों पर आधारित मण्डप, साधारण अधिष्ठान, सपाट छत और चतुष्कोण गर्भगृह उसे साँची के मन्दिर संख्या 17 के अनुरूप सिद्ध करते हैं। स्तम्भों का आकार चौकियों पर चतुष्कोण और मध्य में षोडशकोण तथा शीर्ष पर गोल है। पाषाणों की जुड़ाई गारे के बिना हुई है और उनपर प्लास्टर नहीं हुआ है। गर्भगृह का प्रवेश-द्वार संकीर्ण है। इन सब दृष्टियों से भी यह साँची के उक्त मन्दिर से समानता रखता है। इसकी तुलना ऐहोल के लाड़खाँ मन्दिर से भी की जानी चाहिए। स्तम्भ, मण्डप और गर्भगृह आदि की दृष्टि से तो इन दोनों में समानता है ही, छत का रूप धारण करने वाली शिला-प्रणालियों की दृष्टि से भी उल्लेखनीय समानता है। ये शिला-प्रणालिकाएँ एक-दूसरे से गारे आदि के बिना ही जोड़ी गयी हैं। अतः इस मन्दिर के गुप्तकालीन कृति होने में कोई सन्देह नहीं रह जाता। (3) मन्दिर संख्या 15 यह (चित्र संख्या 26) देवगढ़ का सर्वसुन्दर मन्दिर है। प्रवेश-द्वार और स्तम्भों का अलंकरण इसकी सुन्दरता के प्रमाण हैं। प्रवेश-द्वार तक एक 'राहापग' में से पहुँचा जाता है, जिसका निर्माण शेष तीन 'राहापगों' से भिन्न है। अधिष्ठान की ऊंचाई को दोनों ओर की भित्तियों से काटकर यह राहापग ऊपरी सोपान से लगभग 6 इंच पर प्रारम्भ होता है। भित्तियों से लगभग 8 इंच दूर दोनों ओर एक-एक अलंकृत स्तम्भ विद्यमान हैं, जिनसे यह राहापग एक लघुमण्डप का रूप ले लेता है। गुर्जर-प्रतिहार काल में प्रचलित हुए मण्डप का प्रारम्भिक रूप इस राहापग के रूप में सरलता से देखा जा सकता है। ड्योढ़ी के मध्य में उभरा हुआ कल्पवृक्ष उसके दायें ओर युगल-छवि और बायें ओर कीर्तिमुख तथा दोनों ओर सिंह द्वारा आक्रान्त एक-एक पुरुष चित्रित हैं। 1. दे. - चित्र संख्या ।। '). (अ) सर जॉन मार्शल : दी मानुमण्ट्स आफ साँची, जिल्द तीन, फलक CXIV, और भी दे. विसेण्ट ए. स्मिथ : पा हिरटी आफ फाइनल आर्ट इन इण्डिया एण्ड सीलोन (वम्बई, तृतीय संस्करण), फलक 63, आकृति 'अ'। स्थापत्य :: 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy