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अभिलेख से ज्ञात होता है, संवत् 1051 में स्थापित किया गया था। इस द्वार की रचना-शैली से यह स्पष्ट है कि यह मन्दिर की मूल योजना का एक अंग नहीं था, प्रत्युत एक प्राचीन द्वार के स्थान पर बाद में इसकी स्थापना की गयी। वर्तमान द्वार (चित्र 18) की रचना-शैली मन्दिर की रचना-शैली से कुछ नवीन है। इससे भी यही प्रतीत होता है कि संवत् 1051 तक यह मन्दिर (गर्भगृह) इतना प्राचीन हो चुका था कि उसका प्रवेश-द्वार नष्ट-भ्रष्ट हो चुका था और उसे बदलना आवश्यक हो गया था। और फिर इसमें स्थित वह मूर्ति (चित्र 51) तो गुप्तकाल के तुरन्त बाद की है ही, जिसकी मुखाकृति, जटाजूट, अंग-प्रत्यंग का सूक्ष्म अंकन तथा अलंकरण की सहज भव्यता गुप्तकाल में विशेष रूप से प्राप्त होती है।
प्रदक्षिणापथ : प्रदक्षिणापथ गर्भगृह के एक या डेढ़ शती पश्चात् निर्मित हुआ होगा। गर्भगृह की कार्निश और उसके ऊपरी भाग को सूक्ष्मता से देखने पर ज्ञात होता है कि उसे काटकर बाद में समाविष्ट किये गये प्रदक्षिणा-पथ के उष्णीष (उत्तरंग) अपनी असमानता को आज भी नहीं छिपा सकते। इसकी बहिभित्तियों में चिनी हुई जालियों' और यक्षी-मूर्तियों के अंकन सहित स्तम्भों की कला गुर्जर-प्रतिहार काल की प्रतीत होती है।
यक्षी-मूर्तियों के नीचे उत्कीर्ण उनके नामों की लिपि आठवीं शती से पूर्व की नहीं हो सकती। और फिर किसी भी गुप्तकालीन मन्दिर में प्रदक्षिणा-पथ देखने को नहीं मिलता। डॉ. हँसमुख धीरजलाल साँकलिया ने इसकी बहिभित्तियों पर अंकित यक्षी-मूर्तियों को लगभग 600 ई. से पूर्व-चन्देलकाल तक की माना है। इससे भी उपर्युक्त धारणा की पुष्टि होती है।
अन्तराल : अन्तराल का निर्माण कदाचित् प्रदक्षिणापथ के साथ या उसके कुछ समय बाद हुआ होगा।
अर्धमण्डप : अर्धमण्डप' भी प्रदक्षिणापथ के साथ या कुछ बाद की कृति होना चाहिए। उसके दक्षिण-पूर्वी स्तम्भ पर के अभिलेख में संवत् 919 उत्कीर्ण है। इससे इस अर्धमण्डप के निर्माण की उत्तरावधि निश्चित होती है। इस अभिलेख में प्रस्तुत स्तम्भ के निर्माण का उल्लेख है, अर्धमण्डप के निर्माण का नहीं। अनुमानतः यह स्तम्भ के स्थान पर स्थापित किया गया होगा जो किसी कारण टूट गया होगा।
1. जालियों की स्थिति का परिज्ञान चित्र संख्या 24 से हो सकता है। 2. कुल 24 यक्षी-मूर्तियाँ जड़ी हुई हैं। कुछ के लिए दे.-चित्र संख्या 101 और 102 । 3. जैन यक्षस् एण्ड यक्षिणीज : बुलेटिन ऑफ दी डेक्कन कॉलेज रिसर्च इंस्टीट्यूट, जिल्द 1, अंक
2-4, मार्च 19.10, आकृति 6, 8, 9। 4. दे...चित्र संख्या 16।
स्थापत्य :: 103
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