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तिकोयपण्णत्तिका गणित
सबसे पहिले सामान्य भूमि का वर्णन है जो सूर्यमंडल के समान गोल, बारह योजन प्रमाण विस्तारवाली (ऋषभदेव तीथकर के समय की) है। इसके पश्चात् , स्तूप का वर्णन है जिसके सम्बन्ध में आकार, लम्बाई, विस्तार, आदि का कथन नहीं है।
गा. ४, ९०१- सम्भवतः सदा प्रचलित महाभाषाएँ १८ तथा क्षुद्रभाषाएँ (dialects )७०० है', ऐसा ज्ञात होता है।
गा. ४, ९०३-९०४- विशेषतया उल्लेखनीय यह वाक्य है "भगवान् जिनेन्द्र की स्वभावतः अस्खलित और अनुपम दिव्य धनि तीनों संध्याकालों में नव मुहतों तक निकलती है"।
गा.४, ९२९- यहां उन विविध प्रकार के बीवों की संख्या पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण दी है जो जिन देव की वन्दना में प्रवृत्त होते हुए स्थित रहते हैं।
गा. ४,९३०-३१- कोठों के क्षेत्र से यद्यपि बीवों का क्षेत्रफल असंख्यातगुणा है. तथापि वे सब जीव लिन देव के माहात्म्य से एक दूसरे से अस्पृष्ट रहते हैं। बालकप्रभृति जीव प्रवेश करने अथवा निकलने में अन्तमहतं काल के भीतर संख्यात योबन चले जाते हैं (यहां इस गति को मध्यम संख्यात ग्रहण करना चाहिये, पर मध्यम संख्यात भी कोई निश्चित संख्या नहीं है)।
गा. ४,९८७-९७-दूरश्रवण और दूरदर्शन ऋद्धियों की इस कल्पना को विशान ने क्रियात्मक कर दिखलाया। वह ऋद्धि आत्मिक विकास का फल थी, यह Radio या television भौतिक उन्नति का फल है। दूरस्पर्श तथा दूरघ्राण भी निकट भविष्य में कार्यान्वित हो सकेगा। इसी प्रकार हो सकता है कि दूरस्वादित्व प्रयोग भी संभव हो सके। दास्वादित्व की सिद्धि के लिये दशा है: बिहेन्द्रिया
भतशानावरण और वीर्यान्तरायका उत्कृष्ट क्षयोपशम तथा आंगोपांग नामकर्म का उदय हो। सीमा, बिहा के उत्कृष्ट विषयक्षेत्र के बाहिर, संख्यात योजन प्रमाण क्षेत्र में स्थित विविध रस है। दूरस्पर्शत्व ऋद्धि के लिये सीमा संख्यात योजन है। इसी प्रकार दूरघ्राणस्व ऋद्धिसिद्ध व्यक्ति संख्यात योजनों में प्राप्त हुए बहुत प्रकार की गंधों को सूंघ सकता है। दूरश्रवणत्व तथा दग्दर्शित्व भी संख्यात योजन अर्थात् ४००० मील गुणित संख्यात प्रमाण दूरी की सीमा तक सिद्ध होता है। ऋद्धिसिद्ध व्यक्ति को बाह्य उपकरणों की आवश्यकता न थी, पर आज बाह्य उपकरणों से अनेक व्यक्ति उस ऋद्धि का विशिष्ट दशाओं में लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
गा.४,२०२५- इस गाथा में अस वद अन्तर्वच क्षेत्र का विष्कम्भ निकालने के लिये सूत्र दिया गया है जब कि अब बीग तथा च स बाण दिया गया हो। यहां आकृति-३१ देखिये। D=वृत्त का विष्कम्भ Diameter 0=बीवा ohord h= बाण height of the segment
Chard
भाकृति- ३१
____-(१)-(१-b) +h pa-D
१ अभिनवावधि में प्राप्त "भूवलय" प्रथ को अंकक्रम से विभिन्न भाषाओं में पढ़ा जा सकता है। इस पर खोज हो रही है।
ति. ग. ९
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