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खर
१६००० योजन
४€
रक्षप्रभा (गा. २, ९ )
पंक
८४००० योजन कीचड़
तिलोयपण्णसिका गणित
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चित्रादि १६ भेद प्रत्येक १००० योजन मोटी एवं वेत्रासन आकार की । गा. २, २६-२७ – कुल बिल ८४ लाख हैं । वे इस प्रकार हैंर. प्र. श.प्र. बा. प्र. पं. प्र. ३०००००० २५००००० १५००००० १००००००
म. प्र. ५
शेष छः पृथ्वियों
गा. २, २८ - सातवीं पृथ्वी के ठीक मध्य में नारकी बिल हैं। अन्त्रहुल पर्यंत में नीचे व ऊपर एक एक हजार योजन छोड़कर पटलों (discs ) में क्रम से नारकियों के बिल है । गा. २, ३६- पटल के सब बिलों के बीचवाला इन्द्रक बिल और चार दिशाओं तथा विदिशाओं मिल श्रेणिबद्ध कहलाते हैं। शेष श्रेणिबद्ध बिलों के इधर उधर रहनेवाले बिल प्रकीर्णक
के पति कहलाते हैं ।
गा. २, ३७ - इन्द्रक बिल, सात पृथ्वियों में क्रमशः १३, ११, ९, ७, ५, ३, १ हैं । प्रथम इंद्रक बिल और द्वितीय इंद्रक बिल के लिये आकृति - २२ 'अ', और 'ब' देखिये ।
of
४८.
आकृति २२ का
अन्बहुल ८०००० योजन
पानी
8€
धू. प्र. ३०००००
पूछ
४७
त. प्र.
९९९९५
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62
आकृति २२ बं
४७
४१
४७
गा. २, ३९ - कुल इंद्रक बिल ४९ हैं ।
गा. २, ५५ - दिशा और विदिशा के कुल प्रकीर्णक बिल (४८४ ) + (४९४४) = ३८८ है । इनमें सीमन्त इन्द्रक बिल को मिलाने पर प्रथम पाथड़े के कुल बिल ३८९ होते हैं ।
गा. २, ५८ -- रूपरैखिक वर्णन देने के पश्चात्, ग्रंथकार श्रेणीव्यवहार गणित का उपयोग कर समान्तर भेटि ( Arithmetical Progression ) के विषय में, इस प्रकरण से सम्बन्धित अशात की गणना के लिये सूत्र आदि का वर्णन करते हैं ।
ति. ग. ६
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