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तिलोयपण्णत्तिका गणित (गा. १, २०३-१४)
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स्के
ल:-१.m. - १.
नौग्रेविकमी आरणमानत
उस *कुल
आकृति-९ में ऊर्व लोक को पूर्व पश्चिम से, ब्रह्मोत्तर स्वर्ग के ऊपर से क्रमशः १ और २ राजु प्रवेश कर स्तंभों द्वारा विभक्त कर दिया है। इस प्रकार विभक्त करने से बाल छोटी भुजायें चित्र में बतलाये अनुसार शेष रहती है । निम्न लिखित स्पष्टीकरण से, इस छेदविधि द्वारा निकाला गया ऊर्ध्व लोक का घनफल स्पष्ट हो जावेगा।
(प्रत्येक क्षेत्र का बाहल्य ७ राजु है) सौधर्म के त्रिभुज (बाह्य क्षेत्र) का धनफल
=xsx३४७% ४३ घन राजु । सानाकुमार के बाल और अभ्यन्तर क्षेत्रों का घनफल =(23+9३४७४३३. = १३६ धनराजु । और इसके बाह्य त्रिभुज का धनफल = . xxx७-५३१ धन राजु ।
प्रहोला
शेत्र
सो
आकृति -
(यहाँ, गजु उत्सेध प्राप्त करना उल्लेखनीय है वो माहेन्द्र के तल से रा. ऊपर से लेकर ब्रमोचर के तल तक सीमित है।)
.:. अभ्यन्तर क्षेत्र का घनफल -३- घन राजु । ब्रमोचर क्षेत्र का धनफल = 1 +१)x३४७ = ३ घन रानु ।
यही, कापिष्ठ क्षेत्र का भी धनफल है। महाशक का घनफल =(+)xx७ = २ धनराजु । सहसार का बाह्य पनफल%3D (+)xx७ = १ धनराजु । आनत का बाह्य और अभ्यंतर घनफल = (+)३४३४-३ धनराजु । " बाम धनफल
32xxx७-१ धनराजु । .:. अभ्यंतर का घनफल
३-१= =३ घनराजु । आरण का घनफल
=(+)३४३४७% धनराजु । नौ वेयकादि का घनफल
४३४१४७= ३ घनराजु । पूर्वोक्त घनफलों का योग = ३५ धनराज है, इसलिये पूर्व पश्चिम दोनों ओर के ऐसे क्षेत्रों का घनफल ७. धनराजु होता है। इनके सिवाय, अर्द्ध घन राजुओं ( दल धनराजुओं ) का घनफल = २४४ x[३४१४७] % २८ घनराजु और मध्यम क्षेत्र (सनाली) का घनफल = १४७४७%3D४९ धनराजु ।
... कुल घनफल=२८+ ४९+ ७०%3D १४७ घनराजु ।
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