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________________ जंबूदीवपण्णन्तिकी प्रस्तावना (गा. १, १९३-९९ ) समानुपात के नियम के अनुसार भूमि से १३, १३, ३, " ..... आदि ऊँचाइयों पर उपर्युक्त नियम द्वारा विभिन्न मुखों के प्रमाण निकाले गए हैं जो आकृति -७ में दिये गये हैं । इसी प्रकार, यहाँ समलम्ब चतुर्भुज आधारखाले ९ लम्ब संक्षेत्र प्राप्त होते हैं जिनके घनफलों का योग करने पर ऊर्ध्व लोक का घनफल १४७ घन राजु प्राप्त होता है । स्केल:- १c.M. - १. ઢ नौग्रेविकसी भारण भारत सहस्त्रार महाशुक्र काष्ठ ब्रहोत्तर माहेन्द्र सौधर्म आकृति ७" Jain Education International आकृति Cals मूद नयन मलय जुल स्केल:- १ WIT (गा. १, २००-२०२ ) ( आकृति - ८ में ) पूर्व और पश्चिम से क्रमशः १ राजु और २ राजु ब्रह्म स्वर्ग के उपरिम भाग से प्रवेश करने पर स्तम्भोत्सेध क्रमशः क ख = राजु और ग घ = राजु प्राप्त होते हैं। शेष प्रक्रिया इस प्रकार है। कि च क ख क्षेत्र का क्षेत्रफल 3r = १××2 . च क ख संक्षेत्र का घनफल =१×ट्टै××७= = ६८ घन राजु इसी तरह संक्षेत्र क ख घग का घनफल For Private & Personal Use Only - [+]×× = = १८है घन राजु = ३ ( संक्षेत्र च क ख ) इनके योग का चौगुना करके उसमें अवशेष मध्यभाग का घनफल जोड़ कर ऊर्ध्व लोक का घनफल निकाला गया है । www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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