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जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना
a-2- d. = bn, जहाँ d, कोई भी इच्छित ऊँचाई है, और मुख b है।
इसी प्रकार आकृति-४ में वही आकृति है और पग के समांतर किसी विवक्षित निचाई पर भूमि निकालने का साधारण सूत्र लिखा जा सकता है। b+[b]d=an.
इस प्रकार, भूमि ७ राजु (१ बगभ्रेणी) तथा
मुख १ राजु लेकर ग्रंथकार ने ऊँचाई सात राजु को आकृति-४
१राजु प्रमाण से विभक्त कर सात पृधियाँ प्राप्त कर उनके मुख और भूमि उपर्युक्त सत्र से निकाले हैं। फिर, उनका घनफल अलग अलग लम्ब संक्षेत्र (बिसका आधार समलम्ब चतुर्भुज है) सूत्र द्वारा निकाला है। इस रीति से कुल घनफल का योग १९६ धन राजु बतलाया है।
(गा. १, १८०-८३) अधोलोक का घनफल एक और रीति से निकालकर बतलाते हैं। आकृति ५ में लोक के अंत स्केल- १em. - राग अर्थात् क ख से दोनों पार्श्वभागों अर्थात् कप और
ख ग की दिशाओं से, क्रमशः ३ राजु, २ राजु और १ राजु भीतर की ओर प्रवेश करने पर उनकी क्रमशः ७ राजु, राजु और राजु ऊँचाईयाँ प्राप्त होती हैं।
इस प्रकार यह क्षेत्र, भिन्न भिन्न आकृतियों के क्षेत्र में विभक्त हो जाता है। ये आकृतियों त्रिभुज और समलम्ब चतुर्भुज है, तथा मध्य क्षेत्र आयत जस गप है। ऐसे क्षेत्रों के क्षेत्रफल निकालने के लिये दो सूत्र दिये गये हैं।
त्रिकोण क च य का क्षेत्रफल निकालने के लिये
समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के उपयोग में आकृति
लाये जानेवाले सूत्र का उपयोग है।
१ इस सम्बन्ध में मिश्र में प्रचलित विधि के विषय में यह विवादास्पद मत है
"The triangles in their pictures look like long and undernoarishod isosceles triangles, and some commentators have assumed that the Egyptians believed that the area of an isosc: Ics triangle is one-half the product of two unoqual sides.”
-Coolidge, A History of Geometrical Methods, p 10, Edn. 1940.
२ इस सूत्र को महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रह के सातवें अध्याय में ५० वीं गाथा द्वारा निरूपित किया है।
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