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- १३. ३० J
तेरसमो उदेसा
[ २३७
महिं तेहि दिट्ठा भेसण्णासण्णरहि' दग्वेदि । सन्णासण्णो त्ति' तदो खंधो णामेण सो होइ ॥ २० अद्वेहिं तेहिं णेया सण्णासण्णेहि तह य दध्वेहि' । ववहारियपरमाणू णिद्दिट्टो सन्वदरिसाहिं ॥ २१ परमाणू तसरेणू रद्दरेणू भग्गयं च बालस्स । लिक्खा जूवा य जवो अट्टगुणविवडिदा कमसो ॥ २२ भट्ठेहि जवेहिं पुणो निष्फण्णं अंगुलं तु तं तिविद्धं । उच्छेद्दणामधेयं पमाणमादंगुलं" चेव ॥ २३ एक्क्काणं ताणं तिविद्या जाणाहि अंगुलवियप्पा | घणपदरसूचिमंगुल समासदो होदि णिदिट्ठा ॥ २४ उच्छे भंगुलेहि" य पंचेव सदेद्दि तद्द य' घेत्तणं । णामेण समुद्दिट्ठो होदि पमाणंगुलो एक्को २५ परमाणु आदिएहि य आगंत्णं तु जो समुप्पण्णो । सो सूचिभंगुलो त्ति' य णामेण य होदि णिद्दिट्ठो ॥ २६ जहि य ज य काले भरद्देरावएस होंति जे मणुया । तोसें तु अंगुलाई आदंगुळ णामदो होइ ॥ २७ उच्छेह अंगुलेण य उच्छेदं तह य होइ जीवाणं । णारयतिरियमणुस्सान" देवाणं तह य णायन्या ॥ २८ सव्वाणं कलसाणं भिंगाराणं" तद्देव दंडाणं | धणुफलि हे सन्ति तोमर हलै मुसकराण सम्वाणं ॥ २९ लगडाणं जुग्गाणं" सिंहासणचामरादवत्ताणं । आदंगुलेण दिट्ठा घरसयणादीण परिमाणं ॥ ३०
सन्न नामक स्कन्ध होता है, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है ॥ २० ॥ उन आठ सन्नासन्न द्रव्योंसे एक व्यावहारिक परमाणु (त्रुटिरेणु ) होता है, ऐसा सर्वदर्शियों के द्वारा निर्दिष्ट किया गया है ॥ २१ ॥ परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, [ क्रमशः उत्तम, मध्यम व जघन्य भोगभूमिज तथा कर्ममू मजके ] बालका अप्रभाग, लिक्षा, यूक और यव, ये क्रमसे आठगुणी वृद्धिको प्राप्त हैं ॥ २२ ॥ पुनः आठ यत्रोंसे एक अंगुल निष्पन्न होता है । वह अंगुल उत्सेध, प्रमाण और आत्मगुलके भेदसे तीन प्रकार है ॥ २३ ॥ उनमेंसे एक एक अंगुल के सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल, इस प्रकार संक्षेपसे तीन तीन भेद जानना चाहिये ॥ २४ ॥ तथा पांच सौ उत्सेधांगुलोको ग्रहण कर नामसे एक प्रमाणांगुल होता है, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है || २५ || परमाणु आदिकों के क्रमसे आकर जो अंगुल उत्पन्न हुआ है वह नामसे ' सूप्यंगुल (उत्सेधसूच्यंगुल) ' निर्दिष्ट किया गया है ।। २६ ।। भरत और ऐरावत इन दो क्षेत्रों में जिस जिस काल में जो मनुष्य होते हैं उनके अंगुल नामसे आत्मांगुल कहे जाते हैं ॥ २७ ॥ उत्सेधांगुल से नारकी, तियेच, मनुष्य तथा देव, इन जीवोंके शरीरका उत्सेधप्रमाण होता है, ऐसा जानना चाहिये ॥ २८ ॥ सब कलश, भृंगार, दण्ड, धनुष, फलक ( या धनुष्फलक ) शक्ति, तोमर, इल, मूसल, रथ, शकट, युग, सिंहासन, चामर, आतपत्र तथा गृह व शयनादिकोंका प्रमाण आत्मगुलसे कहा गद्दा है || २९ - ३० ॥ द्वीप, उदधि, शैल, जिनभवन,
१ उश ओसण्णासन्निहि, क बसण्णासणिरहें, प व उसणसण्णेहि २ उ प श दिवेहि श्कप ब अण्णासण्णेति ४ उ पमाणअदंगुलं, श पमाणआदंगुलं. ५ उ उच्छेदसूचि अंगुहि, क प ब बरसूचि अंगुलेहि, श तुच्छहसूचिअंगुलहि. ६ क तब ७ उ श परिमाणु ८ क प ब वि. ९ उश अंगुलाएं. १० उश गिरिषतिरमनुस्सानं, प ब परतिरियमनुस्साणं. ११ प ब सम्माणलसालं भिंगाराणं. १२ क धशफळह, प व भणफहि. १३ उशइल. १४ उश गाणं, प व बंगाणं.
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