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________________ २१.] जंबूदीवपण्णत्ती । १२.१०५बीग पुण विष्णेया भवद्धिदा होति जंबुदीवम्हि । रिग्गेण दु नामो जिणविट्ठा होति त्तीसा ॥१.५ चंदादीवे चत्तारि य सायरे कवणतोए | धादगिसंरेदीवे बारसचंदा यसराय ॥१०॥ बादाकीसं चंदा कालसमुहम्मिति बोदवा | पोक्खरवरद्धदीवे बावत्तरि ससिगणा भणिदा॥१.. ये चंदा रे पूरा णक्खचा खलु इवति छप्पण्णा । छावत्सरी य गहसद जंबूदीवे मणुचरंति ॥ 1.6 भट्ठावीसं रिक्सौ मट्ठासीदं च गंहकुल भणिदं । एक्के दस्स दु परिवारो होदि णायम्यो ॥ १.. छावर्द्धि च सहस्सा णव य सया पण्णहत्तरी होति । एयससीपरिवारो ताराण कोरिकोरीमो ॥१. जोइसबरपासादा मणादिणिहणा सभावणिप्पण्णा । वणवेदिएहि जुत्ता बरसोरणमरिया दिग्वा " बहुदेवदेविपठरा जिणभवणविहसिया परमरम्मा । वेरुलियवज्जमस्मयकक्केयणपउमरायमपा ॥१ भट्टकम्मरहियं भणतणाणुज्जलं अमरमहियं । वरपउमणदिणमियं मरिहणोमि जिणं वंदे ॥१॥ इस जंबूदीवपण्णत्तिसंगहे जोहसलोयवणणो णाम बारसमो उद्देसो समत्तो ॥१२॥ चाहिये ॥ १०४॥ जम्बूद्वीपमें अवस्थित जो स्थिर तारा जिनेन्द्र भगवान्के द्वारा देखे गये हैं के समुदित रूपमें छत्तीस हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥१०५॥ चन्द्र और सूर्य यहाँ जम्बूद्वीपमें दो, स्वम समुद्रमें चार तथा धातकीखण्ड द्वीपमें बारह हैं॥१०६॥ कालोद समुद्रमें ब्यालीस चन्द्र जानना चाहिये। अर्ध पुष्करवर द्वीपमें बहत्तर चन्द्रगण कहे गये हैं ॥१०७ ॥ जम्बूद्वीपमें दो चन्द्र, दो सूर्य, छप्पन (२८४ २) नक्षत्र तथा एक सौ छयत्तर (८८४ २) मह संचार करते हैं ॥१०८॥ अट्ठाईस नक्षत्र तथा अठासी ग्रहकुल, यह एक एक चन्द्रका परिवार होता है, ऐसा जानना चाहिये ॥ १०९॥ छयासठ हजार नौ सौ पचत्तर कोडाकोड़ि तारे एक चन्द्रके परिवार स्वरूप होते हैं ॥ ११॥ उपर्युक्त ज्योतिषी देवोंके उत्तम प्रासाद अनादि-निधन, स्वमावसे उत्पन्न, वन-वेदियोंसे युक्त, उत्तम तोरणोंसे मण्डित, दिव्य, बहुत देव-देवियों से प्रचुर, जिनमवनसे सुशोभित, अतिशय रमणीय; तथा वैडूर्य, वज्र, मरकत, कर्केतन एवं पद्पगग मणयोंके परिणाम रूप होते हैं ॥ १११-११२ ॥ जो आठके आधे अर्थात् चार घातिया कमाने रहित, अनन्त ज्ञानसे उज्ज्वल, देवोंसे पूजित एवं श्रेष्ठ पद्मनन्दिसे नमस्कृत हैं उन अरिष्टननि जिनेन्द्रको नमस्कार करता हूं ॥ ११३ ॥ ॥ इस प्रकार जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसंग्रहमें ज्योतिर्लोकवर्णन नामक बारहवां उदेश समाप्त हुआ ॥१२॥ शपीला. २पबपिंडगोण, ३ उ अठ्ठावीसनखत्ता, श भट्ठाचीसा नषता. ४ उ एस्पेक्के बस्स, श परोक्के बंदस्स. ५ परिवारे हिदि,श परिवारो हिदि. ६ उपबश अहह..कवणणा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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