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२२४ ] जंबूदीवपण्णत्ती
[१२. ११एवं मादिच्चस्स वि' दुगुणटुसहस्सवाहणा हॉति । भवसेसगहगणाणं भटुसहस्सा समुद्दिवा' ॥ " णक्वत्ताणं णेया चत्तारि सहस्स हाँति अभिओगा। ताराणं णिहिटा विणि सहस्सा सुरा होनि ॥ १२ जंबूदीवे भावणे यादगिसंडेय कालउदधिम्मि । पोक्खस्वरद्धदीवे चंदक्मिाणा परिभवति ॥ १३ बेचदुबारससंसावादाला दुधिया या सदरी य। चंदा हवंति णेया जहाकमेणं तु णिहिट्ठा ॥ १४ मणसुचरादु:परदो पोक्खरदीपम्मि ससिगणा गया । बारसमय चउसट्ठा समासदों' होति णायध्वा ॥ १५ चदुदालसामादिवत्तारि हवंति हसरा चंदा । पोक्खरवरदीवे ठेव य हॉति गम्छा दु ॥ रूवूणं दलगच्छं'उत्तरशुणिदं तु आदिसंजुतं । गच्छेण पणो गुणिदं सम्बधणं होहणायब्वं ॥ . पमेव दुसेसाण दीवसमुसु आणणविधाणं । चंदाइचाण तहा णायग्वा होइ णियमेण ॥10 णवरि विसेसो जाणेशालिमाछा यादुगुणदुगुणा दु । उत्तरधणपरिमाण चदुरा सम्वस्थ णिहिट्ठा ॥ १९
भी ले जानेवाले दुगुणे पाठ अर्यात् सोलह हजार वाहन देव होते हैं। शेष प्रहमणों के बाहन देव आठ हजार कहे गये हैं ॥११॥ नक्षत्रोके चार हजार और ताराओंके दो हजार आभियोग्य देव निर्दिष्ट किये गये जानना चाहिये ॥१२॥ चन्द्रविमान जम्बूद्वीप, लवण समुद्र, धातकीखण्ड, कालोद समुद्र और पुष्करार्द्ध द्वीपमें परिभ्रमण करते हैं अर्थात् ये यहां गतिशील हैं ॥ १३ ॥ [उपर्युक्त जम्बूद्वीपादिकौ ] यथाक्रमसे दो, चार, बारह, ब्यालीस और दो अधिक सत्तर अपात् बहत्तर चन्द्र निर्दिष्ट किये गये जानना चाहिये ॥ १४ ॥ मानुषोत्तर पर्वतसे आगे पुष्करद्वीपमें बारह सौ चौंसठ चन्द्रविमान हैं, ऐसा संक्षेपसे जानना चाहिये ॥ १५ ॥ पुष्करवर द्वीपमें भादी एक सौ चवालीस, और चय चार चन्द्र हैं । गच्छ यहां आठ है [ अभिप्राय यह कि वहाँ आठ बलयस्थानोंमें उत्तरोत्तर चार चार बढ़ते हुए चन्द्रविमानोंका प्रमाण इस प्रकार हैं-१४४, १४८, १५२, १५६, १६०, १६४, १६८, १७२ ] ॥ १६ ॥ एक कम गच्छके अर्ध भागको चयसे गुणित करके प्राप्त राशिमें आदिको मिलाकर पुनः गच्छसे गुणा करनेपर सर्वधनका प्रमाण जानना चाहिये ।। १७॥
उदाहरण-पुष्कर द्वीपके-८ बलयस्थानों से प्रथम बलयमें (१.४.४ चन्द्र हैं, अत एव यहाँ आदिका प्रमाण १.४४ और गाछका प्रमाण :८ है। प्रस्तुत करणसूत्र के अनुसार यहाँ समस्त चन्द्रों का प्रमाण इस प्रकार आता है- (-) :४ + १४४ x ८ = १२६४.
शेष द्वीप-समुद्र में चन्द्रों व सूर्योकी संख्या लानेके लिये नियमसे यही विधान जानना चाहिये ॥ १८ ॥ विशेषता यह है कि शेष द्वीप-समुद्रमेिं उनके प्रमाणको लाने के लिये आदी और गच्छ उत्तरोत्तर दुगुणे दुगुणे जानना चाहिये । उत्तस्धनका प्रमाण सर्वत्र चार निर्दिष्ट
क आइच वि, प.बादिश्चसा वे, ब आदिवत्स वे. २शप्रतावतोऽप एवंविधास्ति गाका-नखताणं णेया चेत्ता हवंति होति गच्छा दु । ताराणं णिदिवा सेसगहणं अटुसहस्सा समुहि ॥ १२॥ ३ उकश परिमवंति. ४ उा सदलिया, प्र.ब.सदी य. ५पब समासदा. ६.उशदीवे. .शप्रती 'उत्तर पुणिदं' इत्यत भारभ्य 'पुणो गणिदं ' पर्यन्तः पाठस्त्रुटितोऽस्ति. ८३ शनायष्वा, केपायवा १३ श एसेव.
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