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जंबूदीव पणती
[ ११.३१५
मज्झिम.गेव ज्जे सु. य. तिष्येव कमेण होत जायवा । जसहर सुभडणामा सुविसाल कमेणे महर्मिंदा ॥ ३३५ सुमणस तद्द सोमणसं भणियं पीर्दिकरं च इमिसर्टिं । उवरिमगेवज्जग्मिय तिष्णि य पडला समक्खादा ॥ ताई अशुद्दिसं किर आदिच्च चेव होदि णामेण । जस्स दु इमे विमाणा चदुद्दिसं होति चत्तारि ॥ ३३७ चीय अच्चिमा हिणि' दिव्वं बद्दशेयणं' प्रभासं च । पुष्वावरदक्खिणउत्तरेण आदिच्चदो होति ॥ ३३८ एदे पंचविमाणा जे होंति भणुत्तरा दु सम्बट्टे । जम्मि य सम्वद्वादो सुहसादमणंतयं जरथ ॥ ३३९ विजयं च वैजयंतं जयंतमपराजियं च णामेण । सन्वट्टस्स दु एदे चदुसु वि. य दिसासुं चलारि ॥ २४० एदे विमाणडला होति तिसट्ठी कमेण बोद्धवा | कप्पा. सोधम्मादी णादन्या अम्बुदो जाम ॥ ३४१ गेवज्जादि काउं जावें विमाणा अणुत्तरा पंच । ९दे विमाणवासी समए भणिदा समासेण ॥ ३४२ एक्केक्कस विमाणस्स अंतरं जोयणा असंखेज्जा । एक्केवकं च विमाणं होदि असं खेज्जविस्थानं ॥ ३४३ माणुसखेत्तपमाणं" सोधम्मे" होदि उदुचिमाणं तु । जंबूदीवरमाणं होदि विमाणं तु सम्बद्धं ॥ ३४४ पुष्फोवइष्णएसु य सेढिविमाणेषु चैव सब्वेसुँ | आयामो विवखंभो जोयणकोडी असंखेज्जा ॥ ३४५
यशोधर, सुभद्र नामक और सुविशाल, ये तीन अहमिन्द्र पटल हैं ॥ ३३५ ॥ उपरिम मैत्रेयक में सुमनस, सौमनस और इकसठवां प्रीतिकर, ये तीन पटल कहे गये हैं ॥ ३३६ ॥ तत्र अनुदिशों में आदित्य नामक दिव्य एक ही इन्द्रक पटल है, जिसकी चारों दिशाओं में ये चार विमान हैं ॥ ३३७ ॥ अर्चि, अर्चिमालिनी, दिव्य वैरोचन और प्रभास ये चार विमान आदित्य पटळके पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में हैं ॥ ३३८ ॥ [ सर्वार्थसिद्धिके साथ ] ये पांच अनुत्तर विमान सर्वार्थ पटल में हैं, जिस सर्वार्थसिद्धि में अनन्त सुख -साता है ॥ ३३९ ॥ विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नामक ये चार विमान सर्वार्थ पटलकी चारों ही दिशाओं में स्थित हैं ॥३४० ॥ ये विमानपटल क्रमसे तिरेसठ होते हैं, ऐसा जानना चाहिये । सौधर्मसे लेकर अभ्युत पर्यन्त कल्प जानना चाहिये || ३४१ || आगममें संक्षेपसे ग्रैवेयकको आदि लेकर पांच अनुत्तर विमानों तक ये विमानवासी [ कल्पातीत ] कहे गये हैं ॥ ३४२ ।। एक एक विमानका अन्तर असंख्यात योजन है, तथा एक एक विमान असंख्यात योजन प्रमाण विस्तारसे सहित है ॥ ३४३ ॥ सौधर्म कल्पमें स्थित ऋतु विमानका विस्तार मानुषक्षेत्र प्रमाण ( पैंतालीस लाख योजन ) और सर्वार्थ विमानका विस्तार जम्बूद्वीप प्रमाण ( एक लाख योजन ) है || ३४४ ॥ पुष्पों के समान इधर उधर बिखरे हुए प्रकीर्णक विमानोंका विस्तार [ संख्यात व असंख्यात योजन ] तथा सब ही श्रेणिबद्ध विमानोंका आयाम व विष्कम्भ असंख्यात करोड़ योजन है ।। ३४५ ॥
१. क. तेणेव २ श णामेण विसालकमेण, ३ क सोमपासं. ४ उ श तशदिसं किर आदिव्वं. ५ उ व श., अभवी अच्चिदमालिणि ६ उ. श वयशेयणं, क वइरोचणं. ७ उश सव्वट्टो. ८ क. विजयंत ९ उशवि दिसासु. १० उगवउजादि कार्टु जाम, प ब गोवज्जादि का उ जाम, श गेवजादुं का जाम. ११ प ब खेतविमाणं. १२ उश सोधम्मो . १३ क सोधम्मे विदुविमाणं. १४ उ रा सद्देसु.
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