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________________ जंबूदीवपण्णतिकी प्रस्तावना इसके आगे बढ़ने के पहिले यह आवश्यक प्रतीत होता है कि इस योजन की दूरी आब-कल के रैखिक माप में क्या होगी? यदि हम २ हाथ-१गज मानते हैं तो स्थूल रूप से १ योजन ८०००००० गज के बराबर अथवा ४५४५४५ मील ( Miles) के बराबर प्राप्त होता है। यदि हम १ कोश को आजकल के मील के समान लें, तो १ योजन ४००० मील ( Miles) के बराबर प्राप्त होता है। कर्मभूमि के बालाग्र का विस्तार आज-कल के सूक्ष्म यंत्रों द्वारा किये गये मापों के अनुसार इंच से लेकर इंच तक होता है। यदि हम इस प्रमाण के अनुसार योजन का माप निकालें तो उपर्युक्त प्राप्त प्रमाणों से अत्यधिक भिन्नता प्राप्त होती है । बालाग्र का प्रमाण पईच मानने पर १ योजन ४९६४८४८ मील प्रमाण आता है। कर्मभूमि का बालाग्राइच मानने से योवन ४७२७२ मील के बराबर पाया बाता है। बालान को इंच प्रमाण मानने से योजन का प्रमाण और भी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में, हम १ योजन को ४५४५४५ मील मानना उपयुक्त समझकर, इस प्रमाण को आगे उपयोग में लावेंगे। (गा. १, ११६ आदि) पल्य की संख्या निश्चित करने के लिये ग्रंथकार ने यहां बेलन (पृ. २१ पर आकृति-१ देखिये) का घनफल निकालने के लिये सूत्र दिया है बो Trh के ही समान है। प्रथम, लम्ब वर्तुलाकार ठोस बेलन के आधार का क्षेत्रफल निकालने के लिये उसकी परिधि को प्राप्त किया है। परिधि को प्राप्त करने के लिये व्यास को V१० से गुणित किया है, अर्थात् पाराम की निष्पत्ति को V. माना है, जो ३.१६२२... के बराबर प्राप्त होता है। इसका उपयोग प्रायः सभी जैन शास्त्रों में वहां वृत्त क्षेत्र का गणित आया है, किया गया है। ईसा से सहस्रों वर्ष पूर्व भी इस प्रमाण के भिन्न भिन्न रूप उपयोग में लाये गये। ईसासे १६५० वर्ष पूर्व मिश्र के आहम्स के पेपीरसमें इस प्रमाण को ३.१६०५ लिया गया है। भास्कराचाये ने भी स्थूल मान के लिय/१० उपयाग किया है। 'व्यास १एच. टी. कालत्रक ने अनुमान रूप से लिखा है. “Braumgupta gave Vio which is eqnal to 3:1622....... Ho is said to have obtained this value by insoriving in a circle of unit diameter regular polygons of 12, 24, 48 and 96 siues & ouduulating successively their perimeters which he found to be V 9-68, V 9.81, V 9.86, V98-7 respootively and to have assumed that as number of sidos is increased inaefinitely, the yerimoter would approximate to V10". ब्रह्मगुप्त (६२८ वा सदी) और भास्कर ( १९५० वीं सदी) की बीजगणित के अनुवाद में पृष्ठ १.८ अध्याय १२ वा अनुच्छेद ४०. ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रीस में एंटीफोन के द्वारा ईसा से प्रायः ४०० वर्ष पूर्व दी गई Method of Exhaustion (निश्शेषण की रीति ) से भारतीयों ने प्रेरणा ली है। क्योंकि, भी सेनफोर्ड ने "This was the method of exhaustion, due in all probability to Antiphon (0430 B.O). This method was developed in connection with the quadrature' of the circle. It consisted of doubling & rodoubling the number of sides of a regular inscribed polygon, the assumption being that, as this process continued, the Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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