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जंबूदीपपण्णत्ती
[ ११. १२६चोत्तीस तीस चोदाल ताले अडतीसमेव चोत्तीसा । तालं छत्तीस पि य छण्हं पण्णासमेव छावाला ॥ १२६ सव्वेसि एदाणं पत्तेयं जिणघरे णमसामि । सत्तेवे य कोडीओ बावत्तरिलक्खअब्भधिया ॥ १२७ सम्वे वि बेदिसहिया सव्वे वरतोरणेहि कयसोहा । सम्वे अगाइगिहणो सव्वे मणिरयणसंछण्णा॥१२८ धुवंतधयबडाया मुत्तादामेहि मंडिया दिव्वा । कालागरुगंधड्ढा बहुकुसुमकयच्चणसणाहा ॥ १२९ शाइणिगणसंछण्मा संगीयमुदिंगसद्दगंभीरा । बग्जिदणीलमरगयणाणामणिरयणपरिणामा ॥ १३० सत्ताणीयाणि तहा तिणि य परिसाहि.सादरक्खाहिं। सामाणियाहि जुत्ता णागकुमारा समुद्दिहा ।। १३१ बहुअच्छरेहिं जुत्ता सम्वाहरणेहि मंडियसरीरा । पुण्णेण समुप्पण्णा देवा भवणेसु णायव्वा ॥ १३२ कडिसुत्तकडयकंठावरहारविहूसिया मणभिरामा । पजलंतमहामउडा मणिकुंडलमंडिया गंडा॥१३३ .. सुकमारपाणिपादा णीलुप्पलसुरहिगंधणीसासा । लायण्णरूवकलिया संपुण्णमियंकवरवयणा ॥ १३४ सिंहासणमझगया सियचामरविज्जमाण बहुमाणा 1 सेदादवत्तचिण्हा भवणिंदा सुरवरा या ॥ १३५
व तीस लाख, चवालीस लाख व चालीस लाख, अडतीस लाख व चौंतीस लाख, छहके चालीस लाख व छत्तीस लाख, तथा पचास लाख व ख्यालीस लाख भवन हैं। इन सब भवनोंमेंसे प्रत्येक भवनमें जिनगृह हैं । उन जिनगृहोंको मैं नमस्कार करता हूं। उनका समस्त प्रमाण सात करोड़ बहत्तर लाख ( ७७२००००० ) है ॥१२६-१२७॥ सब ही जिनप्रासाद वेदियोंसे सहित, सब उत्तम तोरणोंसे शोभायमान, सब अनादि-निधन, सब मणियों एवं रत्नोंसे व्याप्त, फहराती हुई ध्वजापताकाओंसे सहित, मुक्तामालाओंसे मण्डित, दिव्य, कालागरुकी गन्धसे व्याप्त, बहुत कुसुमोंके द्वारा की गई पूजासे सनाथ, नर्तकियोंके समूहसे व्याप्त, संगीत एवं मृदंगके शब्दसे गंभीर; तथा वज्र, इन्द्रनील व मरकत रूप नाना मणियों एवं रत्नोंके परिणाम स्वरूप हैं ।। १२८-१३० ॥ नागकुमार देव सात अनीक, तीन प्रकारके पारिषद, आत्मरक्ष और सामानिक देवोंसे युक्त कहे गये हैं ॥ १३१ ॥ बहुतसी अप्सराओंसे संयुक्त व समस्त आभरणोंसे अलंकृत शरीरवाले वे देव पुण्यके प्रभावसे उक्त भवनोंमें उत्पन्न होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ १३२ ॥ उपर्युक्त भवनवासी देवेन्द्र कटिसूत्र, कटक, कंठा व उत्तम हारसे विभूषित; मनको अभिराम, चमकते हुए महा मुकुटसे संयुक्त, मणिमय कुण्डलोंसे मण्डित कपोलोंवाले, सुकुमार हाथ-पैरोंसे युक्त, नीलोत्पलके समान सुगन्धित निश्वाससे सहित, लावण्यमय रूपसे संयुक्त, पूर्ण चन्द्रके सदृश मुखवाले, सिंहासनके मध्यमें स्थित, धवल चामरोंसे वीज्यमान, बहुत सम्मानित, तथा श्वेत छत्र मंप चिह्नसे संयुक्त हैं; ऐसा जानना चाहिये ॥ १३३ -१३५ ॥ अधोलोकमें भूतोंके चौदह
१ब दाल. २ श जिगब्बरे नमंमि तेव. ३ उ श संपुग्णा. ४ श रयगसंपुणा. ५ उश परिसादि यादरम्याहि, ब परिसादि आदरक्खाहि. ६ श प्रतौ त्रुटिता जातेयं गाथा. ७ उ ब मंडिया. ८ क मंडिया दिवा, य मंडिया मंडा.
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