SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ ] जंबूदीपणसी [ ९. २३ मणिकंच्चणधरणिवहो अच्छर बहुकोडिसंजुदो रम्मी । काणणवणसंछष्णो सदावदिणामसुरंगुत्तो ॥ २३ भवरेण तदो गंतुं होइ सुपउमो ति णामदो त्रिजभो । णीलुप्पलछण्णाहिं वणिणित्र देहि संछष्णो ॥ २४ रयणायरे हि जुत्तो पट्टणदोणामुदेहि संछष्णो । कब्बडमदंवणिवही बहुगामसमाउलो रस्मो ॥ २५ गंगाजळेण सित्तो सिंधूसेलिलेण पीणिओ' उदरो । वेदड्ढतुंगम उडो विजयणरिंदो मणभिरामो ॥ २६ सम्मि सम्मि मज्झे सिंहपुरी णाम होइ वरणयरी। सीहपरककमजुत्ता णरसीदा जत्थ' बहु अस्थि ॥ २७ वणवेदिपद्दि जुत्ता वरतोरणमंडिया मणभिरामा' | धुब्बंतघयवढाया जिणभवणविहूसिया दिग्वा ॥ २८ अवरेण तदो गंतुं खारोदा णामदो नदी होइ । मणिमेय सोदाणजुद । णिम्मलसलिलेहि परिण्णा ॥ २९ कणयमयवेदिणिवा वणसंडविहूसिया मणभिरामा । मणिगंणणिवहेहि तहा तोरणदारेहि साहीणा ॥ ३० मट्ठावीसाहि तहा सहस्वगुणिदाहि णदिहिं संजुत्ता । सीदोदासरिसलिलं पविसह दारेण तुंगेण ॥ ३१ भवरेण तदो गंतुं होइ महापउमणामवरदेसो । अमरकुमारसमाणा णरपत्ररा जत्थ दीति ॥ ३२ उत्तम तोरणोंसे मण्डित, दिव्य, मणिमय एवं सुवर्णमय गृहसमूइसे सहित, कई करोड़ अप्सराओंसे संयुक्त, रम्य, कानन-वनोंसे व्याप्त और श्रद्धावती नामक देवसे युक्त है ॥ २१-२३॥ उससे पश्चिम की ओर जाकर सुपद्म नामक विजय है । यह विजय नीलोत्पलों से व्याप्त वप्रिणसमूहों से घिरा हुआ, रत्नाकरोंसे युक्त, पट्टनों व द्रोणमुखोंसे व्याप्त कर्बों व मटंबों के समूहों से सहित, रम्य और बहुत ग्रामोंसे व्याप्त है ॥ २४-२५ ॥ उक्त विजय रूपी नरेन्द्र गंगाजल से अभिषिक, सिन्धुसलिलसे प्रीणित ( पुष्ट) उदवाला अथवा उदार और वैताढ्य पर्वत रूपी उन्नत मुकुटसे सहित होता हुआ मनोहर है || २६ ।। उस देशके मध्य में सिंहपुरी नामकी उत्तम नगरी है, जहां सिंहके समान पराक्रमसे युक्त बहुतसे श्रेष्ठ मनुष्य हैं ॥ २७ ॥ यह दिव्य नगरी वन वेदियोंसे युक्त, उत्तम तोरणोंसे मण्डित, मनको अभिराम, फहराती हुई ध्वज पताकाओं से सहित और जिनभवनोंसे विभूषित है ॥ २८ ॥ उससे पश्चिम की ओर जाकर क्षारोद | नामकी नदी है । यह नदी मणिमय सोपानोंसे युक्त, निर्मल जलसे परिपूर्ण, सुवर्णमय वेदीसमूह से सहित, वनखण्डोंसे विभूषित, मनको अभिराम, मणिगणों के समूहों से तथा तोरणद्वारोंसे स्वाधीन और अट्ठाईस हजार नदियोंसे संयुक्त होकर उन्नत द्वारसे सीतोदा नदी के जल में प्रवेश करती है । २९-३१ ॥ उससे पश्चिम की ओर जाकर महापद्म नामका उत्तम देश है, जहां श्रेष्ठ मनुष्य देवकुमारों के समान दिखते हैं ।। ३२ ।। यह देश उत्तम १ ल श सर. २ ब सुपउसु चि. शरपयणवरेहि ५ उश संधू. ६ ब ९श मिणि. १० उश मणमिरम्मा अट्ठावीसेहि तह सहस्सगुणिदेहि १३ उ Jain Education International ३ ब 'नाहिं या वविण, श ण्णाहं वप्पिण ४ उ रयणयरेहि, पीणिदो. ७ उ दश तत्थ. ८ उ मणमिरम्मा, श मणभिरामो. ११ उश मिण. १२ उश अट्ठावीसेहि तहा सहस्सगुणिदाहिं, रा दाराण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy