________________
- ६. १४४ ]
छट्टो उद्देसो
पालो णामाको नागकुमाराण वरकुमारीभो । पुगपल्लाडगामी दसधणुदेहा ॥ १३५ णि कुमारियाम महिणवलावण्णरूवजुतामो । माहरणभूसियाओ मिनुकोमल मडुरवयणाओ ॥ १३६ तेसु भगणे या देवाभो होति चारुरूवाओं । धम्मेदवण्णा विबुद्धसीभावा ॥ १३७ देवीण तिष्णि परिसा सत्ताणीया हवीत णामध्वा । तह आदरक्स असुरा सामाणीया य सुरसंघा ॥ १३८ तिष्णेय य परिमाणं धूमदिसे सीहमाणभागेसु । होंति भचणाणि या पफुलपउमेसु सब्बे ॥ ११९ बसीसा चालीसा भडदाला तद्द सहस्वसंगुणिदा । परिसंखा गिट्टि। समासदो ताण सध्वाणं ॥ १४०
यसी हवस गय वरदिसासु पउमाणि होति रक्खाणं । पत्तेयं पत्तेयं चदुरो चकुरो सहस्सानि ॥ १४१ सामानियाणवि तहा खरगजखेसु चदुसहस्पाणि । सन्त पउमाणि गया सत्ताणीयाण वसम्म ॥ १४२ धर्मधूम सिंह मंडल गोवई खरणागतं खभामासु । होति पउमाणि या सर्व च मट्टाणि देवाणं ॥ १४३ एक्काण दहाणं ददोषासेसु पुध्वपच्छिमदो कंचनका दस दस गायध्वा होति रमणीया ॥ १४४
एक पल्य प्रमाण आयुवाली और दश धनुष उन्नत देहकी धारक हैं ।। १३४-१३५ ॥ उन भनें में सदा कुमारी रहनेवाली ये देवियां अभिनव लावण्यमय रूपसे संयुक्त, आमरणोंसे भूषित; मृदु, कोमल एवं मधुर वचनों को बोलनेवाली, सुन्दर रूपसे सहित और विशुद्ध शील व स्वभावसे सम्पन्न होती है ।। १३६- १३० ।। इन देवियोंके तीन पारिषद, सात अनीक तथा आत्मरक्षक देवों एवं सामानिक देवों के समूह होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ १३८ ॥ तीनों पारिषद देवोंके भवन आग्नेय, दक्षिण और ईशान भागोंमें स्थित सब विकसित पद्मोंके ऊपर होते हैं ।। १३९ ॥ उन सबकी संख्या संक्षेपसे क्रमशः बत्तीस हजार, चालीस हजार और अड़तालीस हजार निर्दिष्ट की गई है ॥ १४० ॥ त्रजा, सिंह, वृषभ और गज दिशाओं ( पूर्वादिक चारों) मेंसे प्रत्येक दिशामें आत्मरक्षक देवोंके चार चार हजार कमल हैं ॥ १४१ ॥ तथा सामानिक जातिके देवोंके भी चार हजार कमल खर, गज और ढंख अर्थात् काक ( ईशान, उत्तर व वायव्य) दिशाओं में हैं। सात अनीकों के सात कमल वृषभ (पश्चिम) दिशामें जानना चाहिये ॥ १४२ ॥ ध्वजा, धूम, सिंह, मण्डल गोपति ( वृषभ ), खर, नाग ( गज ) और ढंख ( स ) इन आठ दिशाओं में [ प्रतीहार, मंत्री व दूत ] देवों एक सौ आठ पदून जानना चाहिये ॥ १४३ ॥ प्रत्येक द्रइके पूर्व व पश्चिम दो दो पार्श्वभागों में रमणीय दश दश कंचन-शैल जानना चाहिये ॥ १४१ ॥ वन
[ ११३
१ उश कुमारीओ. २ उश चारुरूवीओ ३ उश तिष्णपरिसा, व विष्णिपरिसा ४ व विमेन. ५ ड श धूमदिसो ६ उश समसीहासयगजेसु. ७ उ श रुचाणं ८ श झय ९श गवई. १० श नर्द. बं. बी. १५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org