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६. १२३ ]
छट्टो उद्देसो
( १११
लक्खणवं जण कलिया संपुष्णमियं के सोध्ममुहकैमला। उदयकक्रमंडलणिमा विशुद्धसमवत्तकरकमला ॥ ११४ भारत कमलचरणौ भिष्णंजणसंणिहा हवे केसा | भारतकमलणेत्ता विहुमसमतेयवरभहरा ॥ ११५ सीहा सणछत्तत्तयभामंडलधवल चामरोजुत्ता । मणिकंचणरयणमया पासादवरे सु ते हाँति ॥ ११६ चित्तवित्तिकुमारा से देवा होंति तेसु सेलेसु । भोगोवभोगजुत्ता बहुअच्छर परिउडा धीरा ॥ ११७ उत्तरदिसाविभागं गंतूर्ण जोयणाणि पंचसदा । जमगेहिंतो परदो महादहा होति सरिमझे ॥ ११८ घरवेदिए जुसा तोरणदारेद्दि मंडिया दिव्या । अक्खयअगाहतोया पंचैव य होति नायन्या ॥ ११९ एक्क्काणं अंतर पंचेत्र हवंति जोयणमयाणि । तेवीसा बादाला बे चेत्र कला य मेहस्स' ॥ १२० 'सीदा बादाला बे चैव कला य होइ परिमाणं । दद्दमेरूणं अंतर णादन्यं होइ जिणदिहं ॥ १२१ पुत्र्वावर विस्थिष्णा पंचेव हवंति जोयणसयाणि । उत्तरदक्षिणभागे सदस्य मेयं वियाणाहि ॥ १२२ पायालम्मि पट्टे" दसजोयण वणिया समासेण । पप्फुल्लें कमल कुत्र लथणीलुप्पल कुमुदसंछण्णा ॥ १२३
सहित, सम्पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य मुख कमलवाली, उदयकालीन सूर्यमण्डलके सदृश, विकसित के समान कर-कमलों से संयुक्त, किंचित् लाल कमलके समान चरणोंवाली, भिन्न अंजनके सदृश केरों से संयुक्त, किंचित् लाल कमलके समान नेत्रोंसे सहित विद्रुमके समान कान्तिवाले उत्तम अधरोष्ठों से विभूषित, तथा सिंहासन, तीन छत्र, भामण्डल एवं धवल चामरोंसे युक्त; ऐसी मणि, सुवर्ण एवं रत्नोंके परिणाम रूप अरइन्तों की प्रतिमायें हैं ॥। ११३-११६ ।। उन शैलों पर भोगोपभोग से युक्त और बहुत अप्सराओंसे वेष्टित वे धैर्यशाली चित्रकुमार और विचित्रकुमार देव रहते हैं ॥ ११७ ॥ यमक पर्वत से आगे उत्तर दिशाविभागमें पांच सौ योजन जाकर नदीके मध्य में महा द्रह हैं ॥ ११८ ॥ उसम वेदियों से युक्त, तोरणद्वारोंसे मण्डित, दिव्य और अक्षय अगाध जलसे परिपूर्ण वे द्रह पांच ही होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ११९ ॥ एक एक दहका अन्तर पांच सौ योजन है । तेईस ब्यालीस 1 दो कला मेरुका है ( ? ) ॥ १२० ॥ तेरासी व्यालीस व दो कला प्रमाण, यह जिन भगवान् के द्वारा देखा गया दह और मेरुका अन्तर जानना चाहिये (१) ॥ १२१ ॥ उक्त द्रइ पूर्व-पश्चिम में पांच सौ योजन प्रमाण विस्तीर्ण हैं । उत्तर-दक्षिण भागमें इनका विस्तार एक हजार योजन प्रमाण जानना चाहिये ॥ १२२ ॥ प्रफुल्लित कमल, कुबलय, नीलोत्पल और कुमुदेसि व्याप्त वे द्रह पातालमें प्रविष्ट होनेपर दश योजन अवगाहसे युक्त हैं । इस प्रकार संक्षेप से उनका वर्णन किया गया है ॥ १२३ ॥ उनमें एक योजन प्रमाण विष्कम्भ
१ उश संपुण्णधियंक २ प व सुइ ३ प य अरहंतचरणकमला. ४ उश करद्वारा ५ उ श वासरा ६ उश पासादव से सु प ब पासादावरे. • उश दिसाभिमागं १८ प च य मेरुम्मि श य इ परिमाणं ९ प व तेबीसा बादाला दहमेरूणंतरं कला दोण्णि । जोयणसंस्ता मणिया सयाहि ( व सहारि ) सम्महदरिबीहिं ॥ १० ज श सहसवेयं. ११ प ब यइट्ठा १२ प ब पष्फल.
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