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-६. ८.]
छटो उदेसो
सत्ताणीयाणि सहा सत्तदुमा होति परिछमदिसाए । चदुसु वि दिसाविभागे चत्तारि हवंति महिसणं ॥.. उत्तरपछिमभागे उत्तरभागे य पुष्वउत्तरदो। चत्तारिसहस्सवुमा सामाणियाण बोधवा ॥.. चउरी चउरो पहा सहस्सगुणिया दुमाण जंबूर्ण | पुग्युत्तरदक्षिणपरिछमेसु कमसो मुणेयब्वा ॥ ७२ भट्ठोत्तरसयसंखा भट्टसु वि दिसासु होति रमणीया । भाणाव्यिजक्खस्स य णापन्या भादरक्खाणं ॥३ चाळीसं च सहस्सा सवं च वीसहिय तह य णायम्वा । एवं च सयसहस्सं जंबूर्ण होइ परिसंसा ॥ . जिणभवणाण वि संखा तेत्तियमत्ता हति जंबूसु । णाणारयणमयाणं भकिष्टिमाणं समुहिट्ठा ।। ७५ . जंबूपायवसिहरे सतयचामरादिसंजुना । बहुविहकेदुपाया पलंबमाणा विरायति ॥ ७६ जसिदो वि महप्पा सिंहासणसंठिमो महसत्तो। वरचामरधुवंतो बहुविसुरसमिदिगदंगो || ७० हारविराइयवछो वरकुंडलमंरिमो विउलबाहू । णीलुप्पल संकासो सिदादवत्तेण रमणीभो ॥ ७८ सम्मईसणसुद्धो सम्माविट्ठीण वच्छलो धीरो । सपलं जंबूदी सो भुंजइ एयछत्तेण ॥ ७९ पुष्वं कदेण धम्म सो भुंजइ उत्तमं विसयसोक्खं । एवं णाऊण णरा धम्मम्मि सुभाठिया होह ॥ ८.
चारों ही दिशाओंमें स्थित चार वृक्ष चार अग्र देवियोंके हैं ॥ ७० ॥ उत्तर-पश्चिम ( वायव्य ) भागमें, उत्तर भागमें और पूर्वोत्तर (ईशान) भागमें सामानिक देवोंके चार हजार वृक्ष जानना चाहिये ।। ७१ ॥ ( आत्मरक्षक देवों के ] चार चार हजार जम्बू वृक्ष क्रमसे पूर्व, उत्तर, दक्षिण और पश्चिम दिशामें जानना चाये ॥७२॥ आठों ही दिशाओंमें रमणीय एक सौ पाठ वृक्ष अनाहत यक्षके आत्मरक्षक [प्रतीहार, मंत्री व दूत ] देवोंके हैं ॥ ७३ ॥ जग्बू वृक्षोंकी संख्या एक लाख चालीस हजार एक सौ वीस जानना चाहिये ( १ + ३२००० + ४०००० + ४८००० +७+४+ ४००० + १६००० + १०८ = १४०१२० ) ॥ ७ ॥ जम्बू वृक्षोंपर स्थित नाना रत्नमय अकृत्रिम जिनभवनों की भी संख्या उतनी मात्र अर्थात् एक लाख चालीस हजार एक सी वीस कही गई है । ७५ ।। जम्बू वृक्षके शिखरपर तीन छत्र व चामरादिसे संयुक्त लटकती हुई बहुत प्रकारकी वजा-पताकायें विराजमान हैं ।। ७६ ॥ सिंहासनपर स्थित, महाबलवान् , उत्तम चामगेसे व.ज्यमान, बहुत प्रकारके देवोंके समूहोंसे नमस्कृत, हारसे शोभायमान वक्षस्थलवाली, उत्तम कुण्डलोंसे मण्डित, विशाल भुजाओंसे संयुक्त, नीलोत्पलके सदृश प्रभावाल!, धवल आतपत्र रमणीय, सम्यग्दर्शनसे शुद्ध व सम्यग्दृष्टयों का प्रेमी, ऐसा वह धीर महात्मा यझेन्द्र भी समस्त जम्बू द्वीपको एकाधिपत्यसे. भोगता है ॥ ७७-७९ ॥ वह यक्षेन्द्र पूर्वकृत धर्मसे उत्तम विषयसुखको भोगता है, इस प्रकार जानकर मनुष्योको धर्ममें अतिशय आदर युक्त होना चाहिये ॥८॥ सौमनस गजदन्तके पश्चिम,
13श विसामागे. . उ पब श सामाणियस्स. ३ उश कोटु. ४ ५ ब समदि. ५ ५ १७ळो थी सोक्वं, एवं गाऊण गरावं सो मुंजस्य एयतण. ६ उ श पुब्धिकदेण, पब पुमिकरण... मुभाटिय होह, पब माटियार, श आहिय होइ. ..
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