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जंबूदीवपण्णत्ती उच्छेहं विगुणित्तो पंचासेणूण होइ भायाम । मायामद्धेण पुणो विक्खंभो' होइ भवणाणं ॥ १० विखंभे पक्खिते आयामे जादरासिणा तेणः । उच्छेहे भागहिदे जे लद्धं होइ भवगाहं ॥" तेसिं जिणभवणाणं पुष्वुत्तरदक्षिणेसु दाराणि । तिण्णेव समुट्ठिा कंचणमणिरयणणिवहाणि ॥ १२ दाराणि मुणेयम्वा भट्टेव य जोयणाणि' तुंगाणि । विस्थाराणि तदद्धं मुत्तामणिदामणिवहाणि ॥ १३ भवणेसु अवरपुग्वे मणिमालाविष्फुरतकिरणामो| अट्टेव सहस्सामो लंवंतीनों विचित्तवण्णामो॥१५ चउवीससहस्साभो णिम्मलवरकण पदिनमालामो | ताणतरेसु या लंरंतीमो विरायंति ॥ १५ कप्पूरागरुचंदणतुरुक्छेवरसुरभिधूमगंधड्डा । धूवघडी गायब्वा चउवीसहस्स परिसंखा ॥१६ तरुणरवितेयणिवहा सुगंधदामाण अभिमुहा दिव्वा । बत्तीस रयणकलसा सहस्सगुणिदा समुट्ठिा ॥ १७ चत्तारि सहस्साणि दु बाहिरभागम्मि हाँति मणिमाला। बारल चेव सहस्सा कंचणमाला समुट्ठिा ॥ १८ धूवधा विण्णेया वाहिरभागम्मि वारससहस्सा | सोलस चैव सहस्पा कवणाकसा समुट्ठिा । १९ समहियसोलसजोयणमायामा वित्थडा हु महिया । बेजोयणउविद्धा पीठाण हवंति परिसंखा ॥ २.
उत्सेधको दून। करके पचास कम कर देनेसे भवनोंका आयाम और आयामसे आधा विष्कम्भ होता है ॥ १०॥ आयाममें विष्कम्भके मिलानेपर उत्पन्न हुई उस राशिसे उत्सेधक भाजित करनेपर जो लब्ध हो उतना अवगाहका प्रमाण होता है ॥ ११ ॥ उन जिनभवनोंके पूर्व, उत्तर और दक्षिणमें सुवर्ण, मणि एवं रत्नोंके समूहसे संयुक्त तीन ही द्वार कहे गये हैं ॥ १२ ॥ मुक्ता एवं मणियोंकी मालाओं के समूहसे संयुक्त ये द्वार आठ योजन ऊंचे और इससे आधे विस्तारवाले हैं ॥ १३ ॥ भवनोंमें [द्वारके ! पश्चिम-पूर्वमें प्रकाशमान किरणोंसे सहित और विचित्र वर्णवाली आठ हजार मणिमालायें लटकती रहती हैं ॥ १४ ॥ उनके अन्तरालमें निर्मल उत्तम सुवर्णकी चौबीस हजार दिव्य मालायें लटकती हुई विराजमान होती हैं ॥ १५॥ कपूर, अगरु, चन्दन और तुरुष्कके सुगन्धित उत्तम धूमके गन्धसे व्याप्त चौबीस हजार संख्या प्रमाण धूपघट जानना चाहिये ।। १६ ॥ मुगन्धित मालाओं के अभिमुख तरुण सूर्यके समान तेजपुंजसे संयुक्त. दिव्य बत्तीस हजार रत्नमय कलश करे गये हैं ॥ १७ ॥ बाह्य सागमें चार हजार मणिमालायें और बारह हजार सुवर्णमालायें कही गई हैं॥ १८ ॥ बाह्य भागमें बारह हजार धूपघट और सोलह हजार सुवर्णकलश कहे गये हैं ॥ १९ ॥ सोलह योजनसे अधिक आयत, आठ योजन विस्तीर्ण और दो योजन ऊंची, यह पठिोंके आयामादिका प्रमाण है ॥ २० ॥ भवनोंके ये पीठ वज्र, इन्द्रनील, मरकत,
१उ विउणित्ता,श विउतिणा. २ पब गूण आयाम ३ उश विक्खमं ४ उश आयामं. ५ पब अढेव जोयणाणि.६उ श लंबंत. उ कपूरागरचंदतुरुरक, श कप्पूरावयचंदतुरुरक. ८ उ धूमवदा, पब धूमघा, श धूमञ्चटा. ९ उ भागाम्मि, श मागास्मि. १० उ धूमपरा, श धूमवा.
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