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जंबूदीवपण्णत्ती
[ १.८
णमिऊण' वढमाणं ससुरासुरवंदिदं विगयमोहं। वरसुदगुरुपरिवाडि वोच्छामि जहाणुपुथ्वीए ॥८ विउलगिरितुंगसिहरे जिगिदईदेण वड्डमाणेण । गोदममुणिस्स कहिदं पमाणणयसंजुदं अत्यं ॥ ९ तेण वि लोहज्जस्स य लोहज्जेण य सुधम्मणामेण | गणधरसुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिद्दिटुं॥१० चदुरमलबुद्धिसहिदे तिण्णेदे गणधरे गुणसमग्गे। केवलणाणपईवे सिद्धिं पत्ते णमंसामि ॥" णदीय दिमित्तो अवराजिदैमुणिवरो महातेओ। गोवणो महप्पा महागुणो भद्दयाहू य ॥ १२ पंचेदे पुरिसवरा च उदसपुवी हवति णायब्वा । बारसभंगधरा खलु वीरजिणिंदस्स णायब्वा ॥ १३ तह य विसाखायरिओ पोटिलो खत्तिमो य जयणामोराणागो सिद्धत्यो वि य धिदिसणो विजयणामो य ॥१४ बुद्धिल्ल गंगदेवो धम्मस्सेणो य होइ पच्छिमओ। पारंपरेण एदे दसपुवधरा समक्खादा ॥ १५ णक्खत्तो जसपालो पंडू धुवसेण कंसआयरिओ । एयारसंगधारी पंच जणा होति णिहिट्ठा ॥ १६ । णामेण सुभद्दमुणी जसमद्दो तह य होइ जसबाहू । आयारधरा णेया अपरिछमो लौहणामो य ॥ १७ आइरियपरंपरया सायरदीवाण तह य पण्णत्ती। संखेवेण समत्थं वोच्छामि जहाणुपुवीए ॥ १८
सुर एवं असुरोंसे वंदित और मोहसे रहित वर्धमान जिनेन्द्रको नमस्कार करके उत्तम श्रुतके धारक गुरुओंकी परम्पराको अनुक्रमसे कहता हूं ॥ ८ ॥ विपुलाचल पर्वतके उन्नत शिखरपर जिनेन्द्र भगवान् वर्धमान स्वामीने प्रमाण और नयसे संयुक्त अर्थका गौतम मुनिको उपदेश दिया। उन्होंने ( गौतम गणधरने ) लोहार्यको, और लोहार्य अपर नाम सुधर्म गणधरने जम्बू स्वामीको उपदेश दिया ॥ ९-१०॥ चार निर्मल बुद्धियों ( कोष्ठबुद्धि, बीजबुद्धि, संमिन्नश्रोतबुद्धि और पदानुप्तारिणी बुद्धि) से सहित, गुणोंसे परिपूर्ण, केवलज्ञान रूप उत्कृष्ट द्वीपकसे संयुक्त और सिद्धिको प्राप्त इन तीनों गणधरोंको नमस्कार करता हूं ॥ ११ ॥ नन्दी, नन्दिमित्र, महा तेजस्वी अपराजित मुनीन्द्र, महात्मा गोवर्धन और महागुणोंसे युक्त भद्रबाहु, ये पांच श्रेष्ठ पुरुष चौदह पूर्वोके धारक अर्थात् श्रुतकेवली थे, ऐसा जानना चाहिये । वीर जिनेन्द्रक [ तीर्थमें ] इन्हें बारह अंगोंके धारक जानना चाहिये ॥ १२-१३ ॥ तथा विशाखाचार्य, प्रेष्ठिल, क्षत्रिय, जय नामक, नाग, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय नामक, बुद्धिल्ल, गंगदेव और अन्तिम धर्मसेन, ये परम्परासे दस पूर्वोके धारक कोहे गये हैं ॥१४-१५॥ नक्षत्र, यशपाल, पाण्डु, ध्रुवषेण और कंसाचार्य, ये पांच जन ग्यारह अंगोंके घारक निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ १६ ॥ नामसे सुभद्र मुनी, यशोभद्र, यशोबाहु और अन्तिम लोहाचार्य, ये चार आचार्य आचारांगके धारी जानना चाहिये ॥१७॥ आनुपूर्वी के अनुसार आचार्यपरम्परासे प्राप्त सागर-द्वीपोंकी समस्त प्रज्ञप्तिको संक्षेपमें कहता हूं ॥ १८ ॥ पच्चीस कोडाकोड़ी उद्धार पल्पोंमें
१उ नविऊण, पब श णविऊण. २५व सुधम्मणा य द वलु. ३ उप तिनेदे, ब सिनेदे. ४पब नमसामि. ५उ श णदि.६पब दिमित्ते. ७ प अवराजिय, व अवयविय. ८पब तेऊ. ९पब लोहणामे य. १० उप श समस्थं, ब समछा.
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