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पउमणंदि-विरइया
जंबूदीवपण्णत्ती
[पढमो उद्देसो] देवासुरिंदमहिदे दसद्धरूवूणकम्मपरिहोणे । केवलणाणालोए सद्धम्मुवदेसए' अरुहे ॥" अट्ठविहकम्मरहिए भट्टगुणसमण्णिदे' महावीरे । लोयग्गतिलयभूदे सासयसुहसंठिदे सिद्धे ॥२ पंचाचारसमग्गे पंचेंदियणिज्जिदे विगयमोहे। पंचमहन्वयणिलए पंचमगइणायगायरिए ॥१ परसमयतिमिरदलणे परमागमदेसए उवज्झाए । परमगुणरयणणिवहे परमागमभाविदे वीरे ।।। णाणागुणतर्वणिरए समयन्भासग्गहायपरमरथे । बहुविविहजोगजुत्ते जे लोए सम्वसाहुगणे ।। ५ ते वंदिण सिरसा वौच्छामि जहाकमेण जिणदिई। भायरियपरंपरया पण्णतिं दीवजलधीणं॥ सम्वण्डं सम्वजिणं भवियंभोरुहदिवायरं भवरहियं । सम्वामरवइमहिय सध्वण्हुगुणं समादिसहु ॥
देवेन्द्रों व असुरेन्द्रोंसे पूजित, दसके आधेसे एक कम अर्थात् चार घातिया कोसे रहित, केवलज्ञान रूप प्रकाशसे सहित, और समीचीन धर्मके उपदेशक अरिहन्तोंको; आठ प्रकारके कर्मोंसे रहित, आठ गुणोंसे समन्वित, महावीर, लोकशिखरके तिलक स्वरूप, और शाश्वत सुखमें स्थित सिद्धोको; पंचाचारसे युक्त, पांच इन्द्रियोंके विजेता, मोहसे रहित, पांच महाव्रतोंके स्थानभूत, और पंचम गतिके नायक आचार्योंको; परसमय रूप अंधकारको नष्ट करनेवाले, पुरमागमके उपदेशक, उत्कृष्ट गुण रूप रत्नोंके समूहसे युक्त और परमागमके संस्कारसे सहित वीर उपाध्यायोंको; तथा नाना गुण युक्त तपमें निरत, स्त्रसमयाभ्यास अर्थात् शास्त्रस्वाध्यायसे परमार्थको ग्रहण करनेवाले और बहुत प्रकारके योगोंसे युक्त जो लोकमें सर्वसाधुगण हैं; उनको शिरसे नमस्कार करके ययाकमसे जिनभगवान्के द्वारा उपदिष्ट एवं आचार्यपरम्परासे प्राप्त हुई द्वीपसमुद्रोंकी प्रज्ञप्तिको कहता हूं ॥ १-६॥ सर्वज्ञ, भव्य रूप कमलोंके लिए दिवाकर स्वरूप, भवसे रहित, और सर्व अमरपतियोंसे पूजित समस्त जिन सर्वज्ञगुणको प्रदान करें ॥७॥
१प सद्धम्मुवएसदा, ब सद्धम्मुवयेसदा. २ पब समणिदे. ३५ ब पंचेदियणिजदे. ५५ णाणातवगुण. ५ उप ससमयम्भाव गहिय, ब ससमयसप्तादगहिय, श समयन्मावगहिय. ६ उपश बहुविह. ७पब मवरहिंदं. ८ उश वारहियं. जं.दी. १.
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