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जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना श्रिममें बदख्शा (वैदूर्य) पर्वत, और पश्चिम-दक्षिणमें हिंदूकुश (निषध) पर्वत स्थित हैं।
उत्तरकुरु-दूसरी शतीके प्रसिद्ध रोमन इतिहासवेत्ता टालमीने उत्तरकुरुकी अवस्थिति पामीर प्रदेशमें बतलाई है। ऐतरेय ब्राह्मणके अनुसार उत्तकुरु हिमवानके परे था। इंडियन ऐंटिक्वेरी (१९१९, पृ. ६५ तथा आगे) के एक गवेषणापूर्ण निवन्ध प्रतिपादित किया गया है कि उत्तरकुरु शकों और हुणोंके तीमान्तपर थिपानसान पर्वतके तले था। वायुपुराणके निम्नांकित वचनसे भी उत्तरकुरु सम्बधी इस मतकी पुष्टि होती है
उत्तराणां कुरूणां तु पार्श्व ज्ञेयं तु दक्षिणे ।
समुद्रमूर्मिमालाढ्यं नानास्वरविभूषितम् ॥ ४५-५८ भौमिक स्थितिके अनुसार यह बिलकुल यथार्थ है, क्योंकि, उपर्युक्त स्थापनाके अनुसार उत्तरकुरु पश्चिमी तुर्किस्तान ठहरता है । उसका समुद्र अरल सागर जो प्राचीन कालमें कैस्पियनसे मिला हुआ था, वस्तुतः प्रकृत प्रदेशके दाहिने पार्श्वमें पडता है।
सीता नदी-यह वर्तमान भगोलकी यारकंद नदी है । चातुर्दीपिक भूगोलके अनुसार यह मेरुके पूर्ववर्ती भद्राश्व महादीपकी नदी है । चीनी लोग इसे संस्कृत नाम सीताके अनुसार अब तक सी-तो कहते हैं। यह काराकोरमके शीतान नामक स्कन्धसे निकल कर पामीरके पूर्वकी ओर चीनी तुर्किस्तानमें चली गई है। उक्त शीतान पुराणोंका शीतान्त है एवं काराकोरम पुराणोंका कुमुंज या मुंजवान, जिसका वैदिक नाम मूजवान था। भाज भी उसीके अनुसार उसे मूज-ताग अर्थात् मूज पर्वत कहते हैं ।
सीता नदी तकलामकानकी विस्तीर्ण मरुभूमि से होती हुई, एक आध और नदियोंके मिल जानेके कारण तारीम नाम धारण करके लोपनूर नामक खारी झीलमें, पहिले जिसका विस्तार आजसे कहीं अधिक था, जा गिरती है । इसका वर्णन वायुपुराणमें मिलता है ।
कृत्वा द्विधा सिंधुमरून् सीताऽगात् पश्चिमोदधिम् । ४७,२३. सिंधुमरु तकलामकानके लिये बहुत ही उपयुक्त नाम है , क्योंकि इस मरुभूमिकी एक विशेषता यह है कि इसका बालू देखने में ठीक समुद्र (सिंधु) जैसा जान पड़ता है । पश्चिमोदधिसे लोपनूर झीलका तात्पर्य है।
सुवंशु- जिस प्रकार सीता मेरुके पूर्वकी नदी है उसी प्रकार सुवंशु मेरुके पश्चिमकी नदी है। इसके कई रूप मिलते हैं; यथा- सुचक्षु, सुवक्षु एवं सपक्षु । इसकी उत्पत्ति मेरुके पश्चिमी सर सितोदसे कही गई है, जहांसे निकलकर “ नानाम्लेच्छगणैर्युक्त ' केतुमाल महाद्वीपसे बहती हुई यह पश्चिम समुद्रमें चली गई है। वर्तमान आमू दरिया वा आक्शस ही सुवक्षु है, यह निर्विवाद है । इसके मंगोलियन नाम अक्शू
१ ताग यह तुर्की शब्द पर्वत अर्थका बोधक है।
२ यहां पश्चिम शब्द अवश्य ही किसी अन्य शब्दका अपपाठ है जो लोपनूरकी नामवाचक संज्ञा रहा होगा, क्योंकि सीता नदीके पूर्व समुद्रमें जानेका स्पष्ट उल्लेख रहनेसे उसके पश्चिम समुद्रमें गिरनेकी सम्भावना नहीं है । दूसरे, यहांकी भौमिक स्थिति भी ऐसी है कि वह पश्चिमकी ओर जा भी नहीं सकती।
३ जैन भूगोलमें मेरुके पश्चिमकी ओर अपर विदेहमें बहनेवाली सीतोदा नदीका उल्लेख मिलता है। ४ वायुपुराण ४२।५७,७४.
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