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________________ ११६ जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना उन जिनभवोंके पीठ १६ यो. से कुछ अधिक आयत, ८ यो. से कुछ अधिक विस्तृत और २ यो. ऊंचे हैं। यहाँकी सोपानपंक्तियां १६ यो. लंबी, ८ यो. विस्तृत, ६ यो. ऊंची और २ गम्यूति अवगाहवाली हैं । इन सोपानोंकी संख्या १०८ है । उनमेंसे एक एक सोपानकी उंचाई कुछ अधिक ५५ से कम ५०० धनुष (६ यो. १०८ = ४४४२ धनुष ) है। उन पीठोंकी पेदियां २ कोस ऊंची और ५०० धनुष विस्तृत हैं । वहां स्थित देवच्छंद नामक गर्भगृह स्फटिकमणिमय भित्तियोंसे सहित; वैडूर्यमणिमय खंभोंसे संयुक्त और ३ सोपान से युक्त हैं। इन भवनों में विराजमान अनादि-निधन जिनेन्द्रप्रतिमा ५.. धनष ऊंची और उत्तम लक्षण-व्यंजनोंसे परिपूर्ण हैं। एक एक जिनभवनमें १०/-... जिनप्रतिमायें हैं। इनमें प्रत्येक प्रतिमाके साथ १०८-१०८ प्रातिहार्य होते हैं। ___ यहां उक्त जिनभवनोंके भीतर सिंहादिक चिहोंसे सुशोभित दस प्रकारकी ध्वजाओं, मुखमण्डप, प्रेक्षागृह, सभागृह, स्तूप, चैत्यवृक्ष, सिद्धार्थवृक्ष और वन-वापियों आदिका भी वर्णन किया गया है। इन जिनभवनों में चार प्रकारके देव अपनी अपनी विभूतिके साथ आकर अष्टाहिक दिवसोंमें पूजा करते हैं। इस वर्णनमें यहां आनेवाले सौधर्मादिक १६ इन्द्रोंके नामोंका उल्लेख किया गया है, जो दोनों सम्प्रदाय गत १२ इन्द्रोंकी मान्यताके विरुद्ध है। उक्त इन्द्रोंके यान-विमान क्रमशः ये हैं- १ गज, २ वृषभ, ३ सिंह, ४. तुम हंस, ६ वानर, ७ सारस, ८ मयूर, ९ चक्रवाक, १० पुष्पक विमान, ११ कोयल विमान, १२ गरुड़ विमान, १३ ( आनतेन्द्रके यानविमानका निर्देश गा. १०५ में होना चाहिये था जो नहीं हुआ है) १४ कमल विमान १५ नलिन विमान और १६ कुमुद विमान । इनके हाथोंमें उस समय निम्न सामग्री रहती है१ वत्र, २ त्रिशूल, ३ असि, ४ परशु, ५ मणिदण्ड, ६ पाश, ७ कोदण्ड, ८ कमलकुसुम, ९ पूगफलौका गुच्छा, १० गदा, ११ तोमर, १२ हल-मूसल, १३ सित कुसुममाला, १४ कमलमाला, १५ चम्पकमाला और १६ मुक्तादाम। ६. छठे उद्देशमें १७८ गाथायें हैं। यहां देयकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्रोंका वर्णन किया गया है। उत्तरकुरु क्षेत्र मेरु पर्वतके उत्तर और नील पर्वतके दक्षिणमें है । इसके पूर्वमें माल्यवान् पर्वत और पश्रिममें गन्धमादन शैल है । उसका विस्तार ११८४२२२ यो. है। वहां नील पर्वतके दक्षिणमें १००० यो. जाकर सीला नदीके उभय तटोंपर २ यमक पर्वत हैं। इन दोनों पर्वतोंके बीच ५०० यो. का अन्तर है। नील पर्वतके दक्षिणमें २५०० यो. जाकर सीता नदीके मध्यमें नीलवान् , उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत और माल्यवान् नामके ५ द्रह हैं । इनकी लम्बाई १००० यो., चौड़ाई ५०० यो. और गहराई १० यो. है। इनके भीतर स्थित कमलभवनोंमें द्रह जैसे नामवाली नागकुमारी देवियां सपरिवार निवास करती हैं। यहां कमलों की संख्या आदि पद्मद्रहके समान है । इन द्रोंके पूर्व-पश्चिम पार्श्वभागोंमें १०-१० कांचन शैल स्थित हैं। पांचों द्रहों सम्बन्धी कांचन शैलोंकी संख्या १०० है । ___ उत्तरकुरुके मध्यमें मेरुके उत्तर-पूर्व कोण; सुदर्शन नामक जम्बूवृक्ष स्थित है। इसकी पूर्वादिक चारों दिशाओंमें चार विस्तृत शाखायें हैं। इनमें उत्तरकी शाखापर जिनेन्द्रभवन और शेष तीन शाखाओपर नम्बूद्वीपके अधिपति अनाहत यक्षके भवन हैं। इसके परिवार वृक्षों की संख्या १४०११९ है। .. मंद्र पर्वतके दक्षिण पार्श्वभागमें देवकुरु क्षेत्र है । इसके पूर्व में सौमनस तथा पश्चिममें विद्युत्लभ नामक गजदन्त पर्वत स्थित हैं । यहां भी निषध पर्वतके उत्तरमें १००० यो. जाकर सीतोदा नदीके दोनों तटोपर चित्र और विचित्र नामके २ यमक पर्वत हैं। इनके आगे ५०० यो. जाकर सीतोदा नदीके मध्यमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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